आज लोहारी ग्रामीणों के साथ शासन प्रशासन के बल पूर्वक रवैये से क्षुब्ध हुए ग्रामीणों का कहना है कि डेमोक्रेसी कम डिक्टेटरशिप ज्यादा उत्तराखंड में झलक रही है.समझ ये नही आता जनप्रतिनिधि कहाँ है और कौन से बिल में चले गए.
आज लोहरी गांव के साथ जो शासन प्रशासन ने बल पूर्वक का परिचय दे कर आम जनता के अपने अधिकारों की लड़ाई की आवाज को दबाने का प्रयास किया बहुत निंदनीय है ।
लोहारी गांव की मांगों को शासन प्रशासन को मानना होगा क्योंकि अपनी जन्मभूमि से छोड़कर जाना इतना आसान नही है । लेकिन यदि जलविद्युत परियोजना निर्माण के कारण यदि उन्हें गांव छोडकर जाना पड़ रहा है । तो पूर्व में आंशिक विस्थापन का मुआवजा देकर इतिश्री नहीं कर सकते है ।
बल्कि आज के सर्किल रेट की दर से पूर्ण विस्थापन यानी जमीन के बदले उन्हें जमीन देनी होगी । पूर्व में भी अपने ही प्रदेश में दूसरे जलविद्युत परियोजनाओं से प्रभावित लोगों को जमीन के बदले जमीन और मुआवजा दिया गया है । एक ही प्रदेश में आखिर दोहरे मापदंड जनता के साथ क्यों अपनाए जा रहे है ? ग्राम लोहारी के ग्रामीणों की मांगे पूरी समय रहते हुए सरकार को करनी चाहिए ।
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