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हरिद्वार:

  • दिपू और दिपक कुमार दो सगे भाईयों की दास्तां
  • सफाई करके सफाईदूत, तो डूबते को बचाने से बनते हैं देवदूत



हरकी पैड़ी स्थित अस्थी घाट पर कुछ नौजवान गंगा नदी में कूड़ा कबाड़ आदि बर्तन व धातुओं की सामग्री, जो श्रद्धालुओं द्वारा विसर्जित किये गए हैं, बर्तनों आदि को इकट्ठा कर रहे हैं। बताते हैं कि यह उनकी रोजी-रोटी का सवाल है। वे इस बात से खुश है कि मेला प्रशासन ने उन्हें इस दौरान परिचय पत्र भी दिया है।

ज्ञात हो कि धर्मनगरी हरिद्वार में इन दिनों महाकुंभ चल रहा है। जहां अगले एक माह तक श्रद्धालुओं की बहुतायात भीड़ रहेगी। ऐसे में हरिद्वार निवासी दीपू कुमार और दीपक कुमार दोनों मिलकर के अस्थि घाट पर साफ-सफाई का काम संभाल रखे हैं। यहां जो लोग पानी में बह जाते हैं या कहीं से नदी में लाश बहकर आ रही हो, आदि उनको पकड़ने का काम भी वे करते हैं। वे तैराकी का काम करते हैं और गंगा नदी में विसर्जित की गई तरह-तरह की वस्तुओं को इकट्ठा भी करते हैं। यही नहीं गंगा नदी के प्रवाह में अचानक कोई श्रद्धालु अनजाने से बह रहा हो तो उसे भी दिपू और दिपक दोनो नदी में तैराकी करके बचाने का प्रयास करते है।

गौरतलब हो कि गंगा में विसर्जित सामग्री को जब वे एकत्रित करते है, उससे उनकी रोजी रोटी चलती है। दीपक का कहना है कि गंगा में कुछ लोग तांबे के बर्तन भी विसर्जित करते है, जो आम तौर पर बह जाते है, उसमे मात्र एक प्रतिशत तांबे, कांसे व पितल के बर्तन जैसे लोटा आदि ही बच जाते हैं उन्हें वे पकड़ने का काम पानी के प्रवाह के साथ करते है। इसी से ही उनको रोजगार प्राप्त होता है।

काबिले तारीफ यही है कि बाल्मिकी समुदाय के दीपू कुमार और दीपक कुमार का यह पुश्तैनी धंधा है। इनके समुदाय के अन्य युवा भी हरिद्वार के अलग अलग घाटों पर उनके जैसा ही काम करते है। बताते है कि पहले उनके पिताजी, उससे पहले उनके दादा जी इस धंधे को करते थे, सो अब वे कर रहे है।

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