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अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश के नेत्र रोग विभाग की ओर से काला मोतिया ( ग्लूकोमा ) रोग पर योग पद्धति से किए गए एक अनुसंधान में पाया गया कि अनुलोम विलोम व एब्डोमिनल स्वांस प्रक्रिया (डायफ्राग्मेटिक ब्रीदिंग) से आंख का दबाव 20 फीसदी तक कम किया जा सकता है। भारतीय प्राचीन चिकित्सा पद्धति योग विधि से किए गए इस रिसर्च शोधपत्र को विश्व ग्लूकोमा एसोसीएशन के शोध पत्रिका ‘जरनल ऑफ ग्लूकोमा’ के फरवरी 2021 संस्करण में प्रमुखता से स्थान दिया गया है। 

साथ ही इस शोधपत्र को माह का सर्वोत्तम शोधपत्र भी माना गया है। एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत जी ने संस्थान के नेत्ररोग विभागाध्यक्ष प्रो. संजीव मित्तल को इस उपलब्धि के लिए बधाई दी है और इस दिशा में ​भविष्य में भी अनुसंधान कार्य को जारी रखने को प्रोत्साहित किया है।                                                                                                          गौरतलब है कि एम्स ऋषिकेश के नेत्र रोग विभाग की ओर से आंखों की काला मोतिया (ग्लूकोमा) नामक बीमारी को लेकर भारतीय योग पद्धति की वि​​​​भिन्न यौगिक क्रियाओं पर लगभग दो साल अनुसंधान किया गया। एम्स निदेशक पद्मश्री प्रो. रवि कांत जी ने बताया कि  ग्लूकोमा नामक बीमारी से व्यक्ति की आंखों पर दबाव बढ़ने के कारण मस्तिष्क से होकर आने वाली नस धीरे धीरे सूख जाती है, जिससे रोगी को धीरे धीरे आंखों से दिखना बंद हो जाता है। उन्होंने बताया कि प्रो. संजीव मित्तल द्वारा किए गए इस शोध कार्य में पाया गया कि योग की अनुलोम विलोम व पेट द्वारा स्वांस प्रक्रिया का नियमित अभ्यास करने से आंखों के बढ़े हुए दबाव को 20 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। उन्होंने बताया ​कि इस विषय पर आगे भी शोधकार्य जारी रखा जाएगा।                                                                                              इस अनुसंधान को अंजाम तक पहुंचाने वाले नेत्र रोग विभागाध्यक्ष प्रो. मित्तल ने बताया कि इस रिसर्च का संपूर्ण काल दो वर्ष का रहा। जिसमें लगभग 8 माह तक ग्लूकोमा नामक बीमारी से ग्रसित 60 मरीजों पर रिसर्च की गई। इन मरीजों को समानरूप से दो श्रेणियों में बांटा गया।जिसमें पहले 30 मरीजों को ग्लूकोमा का दवाईयां लगातार उपयोग में लाने को कहा गया जबकि शेष 30 मरीजों को दवा के साथ साथ भारतीय योग पद्धति की अनुलोम विलोम व पेट से साँस लेने की क्रिया (डायफ्रोग्मेटिक ब्रीदिंग) का भी नियमितरूप से अभ्यास करने को कहा गया। आठ महीने तक चले इस अनुसंधान में पाया गया कि पहले 30 मरीजों के मुकाबले दवा के साथ साथ योग क्रियाओं को करने वाले मरीजों की आंखों पर पड़ने वाले दबाव 20 प्रतिशत तक हो गया।                                                                                                                उन्होंने बताया ​कि इस अनुसंधान को अंजाम तक पहुंचाने में संस्थान के फिजियोलॉजी विभाग व आयुष विभाग का काफी सहयोग रहा। इस शोधपत्र रिसर्च को विश्व ग्लूकोमा एसोसिएशन के रिसर्च जरनल जरनल ऑफ ग्लूकोमा-फरवरी 2021 के अंक में प्रमुखता दी गई है। इतना ही नहीं इस शोध प्रपत्र को एसोसिएशन ने फरवरी 2021 का सर्वोत्तम शोधपत्र घोषित किया है। उन्होंने बताया कि इस अनुसंधान से जुड़ी संपूर्ण जानकारी व विडीओ के लिए संबंधित वेबसाइट https://wga.one/wga/jog-paper-of-the-month/ से प्राप्त की जा सकती है।   

                            अनुसंधान का परिणाम-                 

    इस अनुसंधान से ज्ञात हुआ है कि जिन रोगियों की ग्लूकोमा नामक बीमारी के लिए आंखों की दवा चल रही है, ऐसे मरीज अपनी नेत्र ज्योति को गिरने से बचाने के लिए इन यौगिक क्रियाओं का अभ्यास कर सकते हैं। योग की इस पद्धति को अपनाकर यदि उन्हें लाभ प्राप्त होता है तो उनकी नियमित तौर पर लंबे समय तक चलने वाली दवाओं को चिकित्सक के परामर्श के बाद कम किया जा सकता है। उनका मानना है कि यह निशुल्क योग क्रियाएं न सिर्फ इन मरीजों की आंखों की बीमारी वरन शरीर की अन्य व्याधियों के समाधान में भी कारगर सिद्ध हो सकती हैं।                                                                                                                                                                                                    अन्य बीमारियों के लिए भी होगा अनुसंधान           

   उन्होंने बताया कि भविष्य में इस पद्धति से आंखों की अन्य बीमारियों में लाभ पर भी और अनुसंधान किया जाएगा,जिससे दूसरी बीमारियों में भी इन योग पद्धतियों से होने वाले लाभ का पता लगाया जा सके।

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