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  • एकता भारत की ताकत और विविधता, पहचान
  • अनेकता में एकता और इन्द्रधणुषीय संस्कृति ही भारत की विशेषता
  • विविधता में एकता, समरसता और सद्भाव भारत की अमूल्य संपदा-पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज

ऋषिकेश:



 दुनिया भर में आज के दिन को अंतर्राष्ट्रीय मानव एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है। कोरोना वायरस के कारण वैश्विक स्तर पर मानव एकता का महत्व और भी अधिक बढ़ गया है। ज्ञात हो कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2 दिसंबर 2005 को घोषणा की थी कि अंतर्राष्ट्रीय एकता दिवस प्रत्येक वर्ष 20 दिसंबर को मनाया जाएगा।


परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि विविधता में एकता, शांति, भाईचारा, प्यार, सौहार्द और समरसता के मूल्यों से युक्त जीवन ही वास्तविक जीवन पद्धति है। अनेकता में एकता और इन्द्रधणुषीय संस्कृति ही भारत की विशेषता है। 

भारतीय नागरिक विविधतापूर्ण संस्कृति और जीवन पद्धति अपनाते हुए निरंतर आगे बढ़ रहे हैं यह गर्व  का  विषय है। भारतीय संस्कृति हमें यह शिक्षा देती है कि अपने स्व को अक्षुण्ण रखकर विविधता को स्वीकार करना और वसुधैव कुटुम्बकम् के सूत्र को अंगीकार करना ही हमारे संस्कारों में समाहित है।


पूज्य स्वामी जी ने कहा कि विविधता में एकता, समरसता और सद्भाव भारत की अमूल्य संपदा है और यही संपदा भारतीय समाज की सकारात्मकता और सृजनात्मकता की वाहक भी है, जो समाज को सतत् रूप से विकास की ओर बढ़ने की प्रेरणा देती है।  

पूज्य स्वामी जी ने कहा कि एकता भारत की ताकत हैं विविधता, पहचान हैं, जब तक दोनों का समन्वय बना रहेगा, हमारा राष्ट्र उन्नति के शिखर की ओर बढ़ता रहेगा। कोरोना महामारी के कारण आपसी एकता और मजबूत हुयी है। 

विश्व के अधिकांश देश एक वर्ष से अधिक समय से कोरोना महामारी के कारण परेशान है, ऐसे में एकजुटता और सामाजिक सामंजस्य ही समाधान है। सभी राष्ट्र सार्वभौमिक हितों के लिये एक दूसरे के साथ मिलकर कार्य करें यही तो नैसर्गिक नियम भी है। एक-दूसरे पर निर्भरता और सामंजस्य ही उन्नत समाज की आधारशिला है।


पूज्य स्वामी जी ने कहा भारत को तो एकजुटता और  सहयोग की भावना विरासत में मिली हैं। एकजुटता की संस्कृति से ही वसुधैव कुटुम्बकम् और सर्वे भवन्तु सुखिनः की संस्कृति का जन्म होता है। एक अच्छा जीवन जीने के लिए समुदाय के साथ एकजुट होकर रहना आवश्यक है।  विपरीत परिस्थितियों में एक-दूसरे की मदद करना और श्रेष्ठ कार्यों के लिये एक-दूसरे का समर्थन करना बहुत जरूरी है।



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