Halloween party ideas 2015

  • आस्था पर प्रकृति का प्रहार
  •  दिवंगत आत्माओं को भावभीनी श्रद्धांजंलि
ऋषिकेश:


 केदारनाथ आपदा की सातवी बरसी है परन्तु उस मंजर के बारे में सोचकर ही दिल दहल जाता है। 16 व 17 जून 2013 को प्रकृति ने ऐसा कहर बरपाया उसमें अनेक जिन्दगियां तबाह हो गयी। प्राकृतिक आपदाओं को रोका तो नहीं जा सकता परन्तु मानवीय भूलों में सुधार कर कम जरूर किया जा सकता है।
केदारनाथ आपदा की 7 वीं बरसी पर परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने दिवंगत आत्माओं को श्रद्धाजंलि अर्पित करते हुये कहा कि यह प्रकृति का आस्था पर प्रहार था। प्रकृति के साथ यदि छेड़छाड़ की जाये तो वह अपना रौद्र रूप दिखा सकती है, केदारनाथ आपदा उसी का एक उदाहरण है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि वर्तमान समय में वैज्ञानिक युग में प्रकृति व संस्कृति के मानवीय सहचर्य व सोच के मध्य दूरी बढ़ती जा रही है। इस समय वैज्ञानिक विकास को ही विकास का प्रतीक मान लिया गया है तथा प्रकृति व संस्कृति के विपरीत कार्य किया जा रहा है। वैज्ञानिक विकास व उससे होने वाली प्रगति जरूरी है लेकिन पारंपरिक संस्कार व प्रकृति के साथ सामंजस्य उससे भी ज्यादा जरूरी है। जिस प्रकार प्रकृति के विरूद्ध विकास किया जा रहा है, उससे मानव अस्तित्व के लिये बड़ी समस्या उत्पन्न हो सकती है। वर्ष 2013 में आयी केदारनाथ आपदा उसी का परिणाम है। मनुष्य ने प्रकृति व प्राचीन संस्कृति के संयोजन के स्थान पर अंधाधुंध विकास को प्राथमिकता दी है।
प्राचीन काल से ही मानव ने अपने पारंपरिक संस्कारों के माध्यम से प्रकृति के संरक्षण की संस्कृति के साथ विकास को समृद्ध किया है। मनुष्य ने अपनी कई वर्षो की विकास यात्रा के दौरान प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर विकास किया और उसके परिणाम भी सुखद रहे। हमारे ऋषियों ने भी प्रकृति के साथ साहचर्य स्थापित कर ही जीवन जिया। लेकिन वर्तमान में मनुष्य ने भौतिकवादी परिवेश में अपने पारंपरिक संस्कारों को पीछे छोड़ते हुए, प्राकृतिक परिवेश में कंक्रीट के जंगलों को खड़ा कर दिया है। सीमेंट व लोहे से बने घर आज हमारी संस्कृति के अभिन्न अंग बन गये है। अवैज्ञानिक विकास की इस अंधाधुंध दौड़ ने अनेक बार प्राकृतिक आपदाओं को जन्म दिया है। जब उत्तराखंड में केदारनाथ त्रासदी ने अपना कहर बरपाया था उस समय सीमेंट व कंक्रीट के जंगल देखते-ही-देखते धराशायी हो गए तथा प्रकृति-संस्कृति का गठजोड़ बना रहा और हमारे हरे भरे जंगल आज भी खड़े हैं और हम सभी को जीवनदायिनी आॅक्सीजन प्रदान कर रहे हैं।
आधुनिकीकरण के युग में प्रकृति व संस्कृति के मध्य बढ़ते असंतुलन को दूर करने तथा सामंजस्य की स्थापना करने हेतु हरित संस्कृति की अवधारणा को जन्म देना होगा। हरित भवनों का निर्माण करना होगा ये ऐसे भवन होते हैं जो आपदा संभावित क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किये जाते हैं। साथ ही ऊर्जा सक्षमता, जल सक्षमता तथा अपशिष्ट निपटान प्रणाली से युक्त होते हैं, इसके द्वारा ही हम पर्यावरण संरक्षण तथा प्रकृति के साथ संतुलन बना सकते हैं।
हमें प्रकृति व संस्कृति के बेहतर सामंजस्य के लिये पारंपरिक व आधुनिक संस्कारों के मध्य संतुलन स्थापित करना होगा। हम सभी आज संकल्प लें कि प्रकृतिमय जीवनयापन करेंगे और प्रकृति के साथ संतुलन बनाये रखेंगे।

एक टिप्पणी भेजें

www.satyawani.com @ All rights reserved

www.satyawani.com @All rights reserved
Blogger द्वारा संचालित.