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आज-कल रोज सुनने में आ रहा है, कि हमारी सरकार ने महामारी कानून लागु कर रखा हैI रोज नियमो को तोड़ने वालो के खिलाफ महामारी एक्ट के अनुसार कार्यवाही हो रही है, उन पर इस एक्ट के तहत मुक़दमे दर्ज हो रहे हैI आखिर ये महामारी एक्ट है ,क्या? और इसके क्या प्रावधान है? सरकार कब महामरी एक्ट को लागु करती है? इसकी क्या जरुरत है? इन तमाम बातो को जानने के लिए आज हम चर्चा कर रहे है, भारतीय जागरूकता समिति , हाई कोर्ट नैनीताल के अधिवक्ता ललित मिगलानी से :-

क्या है, महामारी कानून?

ये कानून काफी पुराना है ये आज से करीब 123 साल पहले साल 1897 में बनाया गया था, जब भारत पर अंग्रेजों का शासन था। तब बॉम्बे में ब्यूबॉनिक प्लेग नामक महामारी फैली थी। जिस पर काबू पाने के उद्देश्य से अंग्रेजों ने ये कानून बनाया। महामारी वाली खतरनाक बीमारियों को फैलने से रोकने और इसकी बेहतर रोकथाम के लिए ये कानून बनाया गया था। इसके तहत तत्कालीन गवर्नर जेनरल ने स्थानीय अधिकारियों को कुछ विशेष अधिकार दिए थे।

महामारी कानून की खास बातें

ये कानून काफी छोटा है। इसमें सिर्फ चार सेक्शन बनाए गए हैं।
पहले सेक्शन में कानून के शीर्षक और अन्य पहलुओं व शब्दावली को समझाया गया है। दूसरे सेक्शन में सभी विशेष अधिकारों का जिक्र किया गया है जो महामारी के समय में केंद्र व राज्य सरकारों को मिल जाते हैं।
तीसरा सेक्शन कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर भारतीय दंड संहिता (IPC - Indian Penal Code) की धारा 188 के तहत मिलने वाले दंड/जुर्माने का जिक्र करता है। चौथा और आखिरी सेक्शन कानून के प्रावधानों का क्रियान्वयन करने वाले अधिकारियों को कानूनी संरक्षण देता है।

कब लागू कर सकती है सरकार?

देश में महामारी एक्ट लागू है. महामारी एक्ट में नियमों और आदेशों का उल्लंघन करना अब अपराध है. महामारी एक्ट कोई राज्य सरकार तब लागू कर सकती है, जब उसे लगे कि महामारी की रोकथाम के लिए ये जरूरी है. महामारी अधिनियम 1897 के लागू होने के बाद सरकारी आदेश को ना मानना अपराध है. आईपीएसी की धारा 188 के तहत इसमें सजा का प्रावधान है. ये एक्ट अधिकारियों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करता है.
क्या महामारी एक्ट के तहत कही मुक़दमे दर्ज हुए है?

जी हा इस कानून के तहत उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में केस दर्ज होना शुरू हो गया है. वहीं, अन्य राज्यों की सरकारों ने महामारी एक्ट के तहत कड़ी कार्रवाई का संकल्प दोहराया है.

क्या कनिका पर महामारी एक्ट के तहत ही कार्रवाई हुई है ?
लगता तो यही है की सिंगर कनिका कपूर के खिलाफ इसी एक्ट के तहत यूपी सरकार ने कार्रवाई की है. जहातक मिडिया द्वरा ज्ञान हुआ है कनिका पर संवेदनशील मुद्दे पर जानकारी छिपाने के आरोप में आईपीसी धारा 188,269 और 270 के तहत एफआईआर दर्ज हुई है. यह भी जानकरी मीडिया द्वारा प्राप्त हुई है कि कोरोना के मामले विदेशों में भी छिपाए जाने के मामले सामने आए हैं.

इस एक्ट के नियमो के उल्लंघन पर क्या लगेगा जुर्माना है ?

महामारी कानून के सेक्शन 3 के तहत इसका जिक्र किया गया है। इसके अनुसार, कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करने / न मानने पर दोषी को 6 महीने तक की कैद या 1000 रुपये जुर्माना या दोनों की सजा दी जा सकती है।
अभी हाल ही में हमारी केंद्र सरकार ने इस एक्ट में कुछ संशोधन किये है वो क्या है?
महामारी रोग (संशोधन) अध्यादेश 2020 के बारे में ख़ास बातें अभी हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने देश के स्वास्थ्य कर्मचारियों के खिलाफ हमलों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान करने के लिए महामारी रोग अधिनियम, 1897 में संशोधन करने के लिए एक अध्यादेश को मंजूरी दी थी। जो अब, राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के साथ महामारी रोग अधिनियम, 1897 में संशोधन किया जा चुका हैI इस में जोड़ी गयी परिभाषाएं अध्यादेश के जरिये 'हिंसा की गतिविधि', 'स्वास्थ्य सेवा कर्मियों', 'संपत्ति'  को परिभाषित किया गया है और इसे एक नई धारा – '1A' के अंतर्गत रखा गया है। हिंसा की गतिविधि: इसे महामारी के समय में कार्य कर रहे स्वास्थ्य सेवा कर्मियों के सम्बन्ध में परिभाषित किया गया है। इसके अंतर्गत स्वास्थ्य सेवा कर्मियों को तंग करने वाले, अपहानि, क्षति, नुकसान वाले, अभित्रास पहुँचाने या जीवन पर खतरे पैदा करने वाले कृत्य शामिल होंगे। इसके अलावा स्वास्थ्य सेवा कर्मियों के कर्तव्य के निर्वहन के दौरान (क्लिनिकल इस्टैब्लिशमेंट या अन्यथा कहीं और) किसी प्रकार की बाधा पहुँचाना भी हिंसा की गतिविधि  के अंतर्गत आएगा। यही नहीं, स्वास्थ्य सेवा कर्मियों की अभिरक्षा  में या उससे सम्बंधित संपत्ति या दस्तावेज को हानि पहुँचाना या नुकसानग्रस्त करना भी हिंसा की गतिविधि के अंतर्गत आएगा स्वास्थ्य सेवा कर्मियों: इसके अंतर्गत, सार्वजनिक तथा नैदानिक स्वास्थ्य सेवा प्रदाता, जैसे डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिकल कार्यकर्त्ता तथा सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता शामिल हैं। यही नहीं, अध्यादेश के अनुसार, स्वास्थ्य सेवा कर्मियों की परिभाषा में ऐसे सभी लोगों को भी शामिल किया गया है, जिन्हें इस महामारी के प्रकोप को रोकने या इसके प्रसार को रोकने के लिये अधिनियम के तहत अधिकार प्राप्त हैं। इसके अलावा, आधिकारिक गजट में राज्य सरकार द्वारा नोटिफिकेशन के जरिये किसी अन्य वर्ग के व्यक्तियों को भी इसके अंतर्गत शामिल किया जा सकता है। संपत्ति: इसके अंतर्गत, एक क्लिनिकल इस्टैब्लिशमेंट, महामारी के दौरान मरीजों के लिए करन्तीन (Quarantine) या आइसोलेशन के लिए चिन्हित की कोई जगह, एक मोबाइल मेडिकल यूनिट, कोई अन्य संपत्ति जिससे एक स्वास्थ्य सेवा कर्मी का महामारी के दौरान सीधे तौर पर लेने देना हो, शामिल हैं। हिंसा पर रोक और सजा का प्रावधान अध्यादेश के अनुसार इस अधिनियम में जोड़ी गयी एक नई धारा '2A', स्वास्थ्य सेवा कर्मियों के खिलाफ हिंसा को और संपत्ति को नुकसान पहुँचाने को प्रतिबंधित करती है। धारा 3 (2) के तहत, एक स्वास्थ्य सेवा कर्मी के खिलाफ हिंसा की गतिविधि करने वाले व्यक्ति या उस कृत्य का दुष्प्रेरण करने वाले व्यक्ति या संपत्ति को नुकसान पहुँचाने वाले या उस कृत्य का दुष्प्रेरण करने वाले व्यक्ति के लिए कम से कम 3 महीने की सजा का प्रावधान है। हालाँकि इस सजा को 5 वर्ष तक कैद तक बढाया जा सकता है और 50,000 रुपए से लेकर 200000 रुपए तक जुर्माने की सज़ा दी जा सकती है। यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि यदि स्वास्थ्य सेवा कर्मी को भारतीय दंड संहिता की धारा 320 के मायनों में घोर उपहति  कारित की गयी है तो सजा 6 माह से 7 वर्ष तक कैद हो सकती है और जुर्माना 100000 रुपए से 500000 रुपए तक का लगाया जा सकता है। अध्यादेश के अनुसार [धारा 3E (1)], सजा के अतिरिक्त एक अपराधी को पीड़ित को मुआवजे का भुगतान भी (अदालत द्वारा तय किया गया) करना होगा। इसके अलावा, संपत्ति के नुकसान के मामले में, मुआवजा नुकसानग्रस्त संपत्ति के बाज़ार मूल्य का दोगुना होगा [धारा 3E (2)]। कुछ अन्य महत्वपूर्ण बातें इस अध्यादेश के जरिये हिंसा की गतिविधि को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध माना गया है [धारा 3A (i)]। वहीँ, मामले का अन्वेषण एक ऐसे अधिकारी द्वारा किया जायेगा जो इंस्पेक्टर रैंक का या उससे ऊपर की रैंक का हो [धारा 3A (ii)]। अध्यादेश के अनुसार स्वास्थ्य सेवा कर्मी के खिलाफ अपराधों की पुलिस जांच 30 दिनों के भीतर खत्म हो जानी चाहिए [धारा 3A (iii)], और यह कि मुकदमा एक साल के भीतर पूरा होने पर जोर दिया जाना चाहिएI

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