रूद्रप्रयाग :
भूपेन्द्र भण्डारी
भले ही उत्तराखण्ड वो पहला राज्य हो जिसे दो-दो सैनिक विद्यालयों की सौगात
मिल रखी हो लेकिन रूद्रप्रयाग जनपद में स्वीकृत सैनिक विद्यालय पिछले आठ
सालों से अधर में अटका हुआ है। सैनिक विद्यालय के लिए आठ सालों से संघर्ष
कर रहे यहां के ग्रामीणों ने अब आर पार की ठान ली है।
जखोली विकासखण्ड के बडमा पट्टी के दिगधार में वर्ष 2013-14 में स्वीकृत
हुई थी तो इस क्षेत्र के लोगों में ही नहीं बल्कि पूरे जनपद में एक खुशी की
लहर दौड़ पड़ी थी। सैनिक विद्यालय पर शुरूआत में करीब 10 करोड़ खर्च तो कर
दिए गए लेकिन उसके बाद कार्य ठप्प हो गया। पिछले आठ सालों से ग्रामीण सैनिक
विद्यालय निर्माण के लिए संघर्ष कर रहे हैं लेकिन सैनिक विद्यालय की
बुनियाद पर एक ईंट भी नहीं रखी गई। लिहाजा अब सैनिक विद्यालय संघर्ष समिति
के बैनर तले उग्र आन्दोलन की रणनीति बनाई गई।
अध्यक्ष जन अधिकार मंच दरअसल वर्ष 2013-14 में तत्कालीन क्षेत्रीय विधायक और सैनिक कल्याण मंत्री
हरक सिंह रावत ने रूद्रप्रयाग के थाती बड़मा दिगधार में सैनिक विद्यालय
स्वीकृत करवाया था। बड़मा पट्टी के थाती बड़मा, मुन्ना देवल, डंगवाल गांव,
ब्राहमण गांव और सेम के ग्रामीणों ने 13 सौ नाली भूमि दान में दी थी।
विद्यालय निर्माण के लिए प्रारंभिक स्तर पर 5 करोड़ मंडी परिषद और 5 करोड़
रूपये सैनिक मंत्रालय से स्वीकृत हुए। सैनिक विद्यालय निर्माण का जिम्मा
उत्तर प्रदेश निर्माण निगम को दिया गया और 10 करोड़ के वारे न्यारे तो किए
गए किन्तु 10 करोड़ में यहां की भूमि समतलीकरण भी पूरा नहीं हो पाया।
ऐसे
में सरकार ने जब शिक्षा निदेशालय से इसकी जाँच करवाई तो भारी अनिमिताएं पाई
गई और धरातल पर किए गए कार्यों से अधिक धनराशि खर्च कर दी गई। ऐसे में
कार्यादायीं संस्था यूपी निर्माण निगम को दो करोड़ का रिकवरी नोटिस देकर
ब्लैक लिस्ट कर दिया गया।
केन्द्र सरकार द्वारा उत्तराखण्ड सैनिक बाहुल प्रदेश के लिए भले ही दूसरी
सैनिक स्कूल की सौगात दी गई हो लेकिन पूर्व की कांग्रेस सरकार हो या
वर्तमान की भाजपा सरकार दोनों ही सरकारों ने रूदप्रयाग जनपद में स्वीकृत इस
सैनिक विद्यालय के निर्माण को लेकर भारी उदासीनता दिखाई जिस कारण अब यहां
की जनता खुद को ठगा सा महसूस कर रही है। ऐसे में अब यहां की जनता ने आर-पार
की लड़ाई करने की ठान ली है।
एक टिप्पणी भेजें