गुरु तेग बहादुर के 'शहीदी दिवस' की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति का संदेश
भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद ने गुरु तेग बहादुर के 'शहीदी दिवस' की पूर्व संध्या पर अपने संदेश में कहाः-
‘गुरु तेग बहादुर के शहीदी दिवस के अवसर पर मैं उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
सिखों
के नौवें गुरु श्री तेग बहादुर जी का जीवन मानवता की भलाई के लिए और समाज
में एक, सेवा भाव और भाईचारे को बढ़ावा देने वाला रहा। उन्होंने लोगों के
दुःख-दर्द दूर करने के कार्य किए और दमन के विरुद्ध संघर्ष किया। इसलिए
गुरु तेग बहादूर को आदरपूर्वक ‘हिंद की चादर’ कहा जाता है।
आइए,
इस अवसर पर हम सब यह संकल्प लें कि हम समाज में प्रेम, सद्भाव, करुणा और
परोपकार के मूल्यों का प्रसार करेंगे और सभी की भलाई के लिए काम करेंगे।
सर कटा सकते है , लेकिन सर झुका सकते नही, सन्देश देने वाले सिखों के नवें गुरु बहादुर जी के शहीदी दिवस पर आज , पूरा देश उनके अनोखे बलिदान को याद कर रहा है।
"धरम हेत साका जिनि कीआ
सीस दीआ पर सिरड न दीआ।"
गुरू तेग़ बहादुर (1 अप्रैल, 1621 – 24 नवम्बर, 1675) सिखों के नवें गुरु थे जिन्होने प्रथम गुरु नानक द्वारा बताए गये मार्ग का अनुसरण करते रहे। उनके द्वारा रचित 115पद्य गुरु ग्रन्थ साहिब में सम्मिलित हैं।
"धरम हेत साका जिनि कीआ
सीस दीआ पर सिरड न दीआ।"
गुरू तेग़ बहादुर (1 अप्रैल, 1621 – 24 नवम्बर, 1675) सिखों के नवें गुरु थे जिन्होने प्रथम गुरु नानक द्वारा बताए गये मार्ग का अनुसरण करते रहे। उनके द्वारा रचित 115पद्य गुरु ग्रन्थ साहिब में सम्मिलित हैं।
उन्होने काश्मीरी पण्डितों तथा अन्य हिन्दुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाने का विरोध किया।
इस्लाम स्वीकार न करने के कारण 1675 में मुगल शासक औरंगजेब ने उन्हे इस्लाम कबूल करने को कहा कि पर गुरु साहब ने कहा सीस कटा सकते है केश नहीं। फिर उसने गुरुजी का सबके सामने उनका सिर कटवा दिया।
गुरुद्वारा शीश गंज साहिब तथा गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब उन स्थानों का स्मरण दिलाते हैं जहाँ गुरुजी की हत्या की गयी तथा जहाँ उनका अन्तिम संस्कार किया गया।
विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग़ बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय है।
गुरुजी का बलिदान न केवल धर्म पालन के लिए नहीं अपितु समस्त मानवीय सांस्कृतिक विरासत की खातिर बलिदान था। धर्म उनके लिए सांस्कृतिक मूल्यों और जीवन विधान का नाम था। इसलिए धर्म के सत्य शाश्वत मूल्यों के लिए उनका बलि चढ़ जाना वस्तुतः सांस्कृतिक विरासत और इच्छित जीवन विधान के पक्ष में एक परम साहसिक अभियान था।
आततायी शासक की धर्म विरोधी और वैचारिक स्वतंत्रता का दमन करने वाली नीतियों के विरुद्ध गुरु तेग़ बहादुरजी का बलिदान एक अभूतपूर्व ऐतिहासिक घटना थी। यह गुरुजी के निर्भय आचरण, धार्मिक अडिगता और नैतिक उदारता का उच्चतम उदाहरण था। गुरुजी मानवीय धर्म एवं वैचारिक स्वतंत्रता के लिए अपनी महान शहादत देने वाले एक क्रांतिकारी युग पुरुष थे।
11 नवंबर, 1675 ई को दिल्ली के चांदनी चौक में काज़ी ने फ़तवा पढ़ा और जल्लाद जलालदीन ने तलवार करके गुरू साहिब का शीश धड़ से अलग कर दिया। किन्तु गुरु तेग़ बहादुर ने अपने मुंह से सी' तक नहीं कहा।
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