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रूद्रप्रयाग :
 भूपेंद्र  भण्डारी

हिमालय पुत्र चन्द्रकुंवर बर्त्वाल के जन्म को आज 100 साल पूरे हो चुके हैं, इस सुन्हरे अवसर पर उन्हे उनकी ही कविता की कुछ पंक्तियों से अपनी श्रद्धांजली देता है-

मैं न चाहता युग-युग तक पृथ्वी पर जीना पर उतना जी लूँ जितना जीना सुंदर हो!
मैं न चाहता जीवन भर मधुरस ही पीना पर उतना पी लूँ जिससे मधुमय अंतर हो- 




 हिंमवत कवि चन्द्रकुंवर बर्त्वाल ने मात्र 28 सालों के जीवन में हिंदी साहित्य को अनमोल कविताओं का समृद्ध खजाना दे दिया, जिसके कारण उन्हे हिन्दी का कालिदास से लेकर  हिंदी का कीट्स तक कहा जाता है, लेकिन आज उन्हे वो सम्मान नही मिल पाया जिसके वो असली हकदार थे।
 प्रकृति के चहते कवि चन्द्र कुंवर बर्त्वाल जी का जन्म रूद्रप्रयाग जिले के ग्राम मालकोटी, पट्टी तल्ला नागपुर में 20 अगस्त 1919 में हुआ था, अपनी मात्र 28 साल की जीवन में 1 हजार अनमोल कविताऐं, 24 कहानियाॅ, एकांकि नाटक और बाल साहित्य का अनमोल समृद्ध खजाना हिन्दी साहित्य को दिया था, कालीदास को अपना गुरू मानने वाले चन्द्रकुंवर बर्त्वाल ने पोखरी और अगस्तमुनि में अध्यापन का कार्य भी किया, वैसे चन्द्रकुंवर बर्त्वाल को प्रकृति प्रेमी कवि माना गया, उनकी कविताओं में हिमालय, झरनों, नदिया, फूलों, खेतों, बसन्त के अलावा उपनिवेशवाद की खिलाफत भी मिलती है, आज भी उनका काव्य शोघ का विषय है, जिसपर कई छात्र पीएचडी से लेकर डीफील तक कर रहे हैं।

मृत्यु पर आत्मीय ढंग से और विस्तार से लिखने वाले चंद्रकुँवर बर्त्वाल हिंदी के पहले कवि हैं, कवि चन्द्रकुंवर बर्त्वाल की विराट ज्योति, कंकड़-पत्थर, पयस्विनी,काफल पाक्कू, जीतू, मेघ नंदिनी जैसी अनेकों कृतियाॅ हैं, जीवन के अन्तिम दिनों में वो टीवी रोग से ग्रसित हो गये जिस कारण उन्हे अपने पांवलिया के जंगल में बने घर में एकाकी जीवन व्यतीत करना पड़ा, मृत्यु के सामने खड़े कवि चन्द्रकुंवर बर्त्वाल ने अपने सर्वश्रेष्ठ कविताओं को लिखा, 14 सितम्बर सन् 1947 हिन्दी साहित्य का अनमोल कवि अपनी कविताओ को जीवंत  कर हमेशा के लिए दुनिया को अलविदा कह गया.
 उनकी मृत्यु के बाद उनके सहपाठी शंभुप्रसाद बहुगुणा ने उनकी रचनाओं को प्रकाशित कर दुनिया के सामने रखा।

लेकिन इससे बड़ी विडंबना  क्या होगी कि आज भी हिन्दी साहित्य के अनमोल रत्न कवि चन्द्रकुंवर बर्त्वाल राष्ट्रीय स्तर पर वो सम्मान प्राप्त नही कर सकते जिसके वो हकदार थे, यहाॅ तक कि उनके कर्मस्थली जहाॅ मृत्यु से पहले उन्होने अपनी सर्वोत्तम काव्य का लिखा था, आज पांवलीया में वो घर भी खण्डर बन चुका है, लेकिन अब प्रशासन का दावा है कि वहाॅ पर संग्राहलय और पर्यटन स्थल बनाया जायेगा।

हिमालय पुत्र चन्द्रकुंवर बर्त्वाल के जन्म को आज 100 साल पूरे हो चुके हैं, इस सुन्हरे अवसर पर उन्हे उनकी ही कविता की कुछ पंक्तियों से अपनी श्रद्धांजली देता है-

मैं न चाहता युग-युग तक पृथ्वी पर जीना पर उतना जी लूँ जितना जीना सुंदर हो!
मैं न चाहता जीवन भर मधुरस ही पीना पर उतना पी लूँ जिससे मधुमय अंतर हो- चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

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