रूद्रप्रयाग :
भूपेंद्र भंडारी
अपनी छः सूत्रीय मांगों को लेकर बेमियादी धरने पर छात्रों का गुस्सा पाँचवे दिन सड़कों पर फूट पड़ा। छात्रों ने सड़कों पर उतरकर जिला प्रशासन, स्थानीय विधायक से लेकर शिक्षा मंत्री और सरकार के मुर्दाबाद के नारे लगाये। आखिर क्यों छात्रों को सड़कों पर उतरने की आवश्यकता पड़ रही है। जरा इस बात को इस रिपोर्ट में समझिए-
जरा इस बात को समझिए कि आखिर पढ़ाई करने की उम्र में छात्रों को क्यों सड़कों पर मुर्दाबाद के नारे लगाने पर रहे हैं। आन्दोलनों की कोख से जन्मा उत्तराखण्ड राज्य के 19 साल व्यतीत होने के बाद भी अपना भवन, लाइब्रेरी, किताबे, शौचालय, जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए धरना प्रर्दशन करना पड़ रहा है तो यह वास्तव में हमारी सरकारों योजनाकारों और नितिनियंताओं पर गम्भीर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है। साल 2006 में रूद्रप्रयाग का राजकीय महाविद्यालय अस्तित्व में आने के बाद उसे आईटीआई के दो कमरों पर रैतीली में बीसीए और बीबीए की कक्षाओं के साथ आरम्भ किया गया। भारी अव्यवस्थओं के साथ वर्ष 2015 तक यह महाविद्यालय यही संचालित हुआ उसके बाद वर्ष 2016 में इसे रूद्रप्रयाग मुख्य बाजार में बालिका इण्टर काॅलेज के पुराने भवन पर शिफ्ट किया गया। यहां बीए की कक्षा भी संचालित की गई। शहर के बीच होने के कारण यहां छात्रों की संख्या भी बढ़ी लेकिन अपना भवन न होने के कारण छात्रों की सम्स्यायें दिन प्रतिदिन बढ़ती गई।
इस महाविद्यालय के छात्रों के साथ ही काॅलेज प्रशासन द्वारा स्थानीय जनप्रतिनिधियों, जिलाधिकारी और उच्च शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत से यहां की समस्याओं के निराकरण की मांगी लेकिन इस दिशा में कोई कार्य नहीं हुआ है। हालांकि रूसा द्वारा 1 करोड़ 84 लाख रूपये विद्यालय के निर्माण के लिए जरूर दिए गए थे लेकिन महाविद्यालय का निर्माण रूदप्रयाग से करीब 8 किमी दूर ऐसे रेत के ढेर पर किया गया जहाँ लोगों ने इसका विरोध किया। जिसके बाद से विद्यालय का निर्माण ठप्प पड़ा है। हालांकि जहां वर्तमान में यह महाविद्यालय संचालित हो रहा है वहां जिला पंचायत और बालिका इण्टर काॅलेज की जगह है जो काॅलेज के लिए पर्याप्त है लेकिन दोनो विभाग इस जमीन को महाविद्यालय के नाम हस्तातरित नहीं कर रहे हैं। दूसरी ओर छात्रों का कहना है िकइस महाविद्याय में ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब छात्र पढ़ाई करने के लिए आते हैं बीए और बीसीए बीबीए की पढ़ाई के बाद वो आगे की पढ़ाई करने के लिए उन्हें श्रीनगर जैसे मंहगे शहरों की ओर रूख करना पड़ता है। इसलिए यहां बीएसी और एमए की कक्षाए भी संचालित की जानी चाहिए। छात्रों ने रूद्रप्रयाग के मुख्य बाजार में एक विशाल प्रदर्शन कर जिलाधिकारी को भी ज्ञापन दिया । जिलाधिकारी ने कहा कि जिला प्रशासन स्तर की सभी व्यवस्थाएं जल्द मुहैया करवाई जायेगी और शासन स्तर के मामलों को शासन में भेजा जायेगा।
वाकई यह हास्यास्पदही है कि रूद्रप्रयाग महाविद्याल के अस्तित्व में आने के 13 वर्ष बाद भी यह विद्यालय बुनियादी सुविधाओं के लिए जूझ रहा है। जब यह बात भी किसी से छुपी नहीं है कि उत्तराखण्ड में सबसे अधिक बजट शिक्षा के नाम पर खर्च किया जाता है। उसे बावजूद भी धरातल में हालत इस कदर खराब हैं कि छात्र को धरन प्रर्शन और भूख हड़ताल जैसे कदम उठाने पड़ रहे हैं। यह गम्भीर विषय है जिसे हमारे जनप्रतिनिधियों और सरकारों को गम्भीरता से लेना होगा।
भूपेंद्र भंडारी
अपनी छः सूत्रीय मांगों को लेकर बेमियादी धरने पर छात्रों का गुस्सा पाँचवे दिन सड़कों पर फूट पड़ा। छात्रों ने सड़कों पर उतरकर जिला प्रशासन, स्थानीय विधायक से लेकर शिक्षा मंत्री और सरकार के मुर्दाबाद के नारे लगाये। आखिर क्यों छात्रों को सड़कों पर उतरने की आवश्यकता पड़ रही है। जरा इस बात को इस रिपोर्ट में समझिए-
जरा इस बात को समझिए कि आखिर पढ़ाई करने की उम्र में छात्रों को क्यों सड़कों पर मुर्दाबाद के नारे लगाने पर रहे हैं। आन्दोलनों की कोख से जन्मा उत्तराखण्ड राज्य के 19 साल व्यतीत होने के बाद भी अपना भवन, लाइब्रेरी, किताबे, शौचालय, जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए धरना प्रर्दशन करना पड़ रहा है तो यह वास्तव में हमारी सरकारों योजनाकारों और नितिनियंताओं पर गम्भीर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है। साल 2006 में रूद्रप्रयाग का राजकीय महाविद्यालय अस्तित्व में आने के बाद उसे आईटीआई के दो कमरों पर रैतीली में बीसीए और बीबीए की कक्षाओं के साथ आरम्भ किया गया। भारी अव्यवस्थओं के साथ वर्ष 2015 तक यह महाविद्यालय यही संचालित हुआ उसके बाद वर्ष 2016 में इसे रूद्रप्रयाग मुख्य बाजार में बालिका इण्टर काॅलेज के पुराने भवन पर शिफ्ट किया गया। यहां बीए की कक्षा भी संचालित की गई। शहर के बीच होने के कारण यहां छात्रों की संख्या भी बढ़ी लेकिन अपना भवन न होने के कारण छात्रों की सम्स्यायें दिन प्रतिदिन बढ़ती गई।
इस महाविद्यालय के छात्रों के साथ ही काॅलेज प्रशासन द्वारा स्थानीय जनप्रतिनिधियों, जिलाधिकारी और उच्च शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत से यहां की समस्याओं के निराकरण की मांगी लेकिन इस दिशा में कोई कार्य नहीं हुआ है। हालांकि रूसा द्वारा 1 करोड़ 84 लाख रूपये विद्यालय के निर्माण के लिए जरूर दिए गए थे लेकिन महाविद्यालय का निर्माण रूदप्रयाग से करीब 8 किमी दूर ऐसे रेत के ढेर पर किया गया जहाँ लोगों ने इसका विरोध किया। जिसके बाद से विद्यालय का निर्माण ठप्प पड़ा है। हालांकि जहां वर्तमान में यह महाविद्यालय संचालित हो रहा है वहां जिला पंचायत और बालिका इण्टर काॅलेज की जगह है जो काॅलेज के लिए पर्याप्त है लेकिन दोनो विभाग इस जमीन को महाविद्यालय के नाम हस्तातरित नहीं कर रहे हैं। दूसरी ओर छात्रों का कहना है िकइस महाविद्याय में ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब छात्र पढ़ाई करने के लिए आते हैं बीए और बीसीए बीबीए की पढ़ाई के बाद वो आगे की पढ़ाई करने के लिए उन्हें श्रीनगर जैसे मंहगे शहरों की ओर रूख करना पड़ता है। इसलिए यहां बीएसी और एमए की कक्षाए भी संचालित की जानी चाहिए। छात्रों ने रूद्रप्रयाग के मुख्य बाजार में एक विशाल प्रदर्शन कर जिलाधिकारी को भी ज्ञापन दिया । जिलाधिकारी ने कहा कि जिला प्रशासन स्तर की सभी व्यवस्थाएं जल्द मुहैया करवाई जायेगी और शासन स्तर के मामलों को शासन में भेजा जायेगा।
वाकई यह हास्यास्पदही है कि रूद्रप्रयाग महाविद्याल के अस्तित्व में आने के 13 वर्ष बाद भी यह विद्यालय बुनियादी सुविधाओं के लिए जूझ रहा है। जब यह बात भी किसी से छुपी नहीं है कि उत्तराखण्ड में सबसे अधिक बजट शिक्षा के नाम पर खर्च किया जाता है। उसे बावजूद भी धरातल में हालत इस कदर खराब हैं कि छात्र को धरन प्रर्शन और भूख हड़ताल जैसे कदम उठाने पड़ रहे हैं। यह गम्भीर विषय है जिसे हमारे जनप्रतिनिधियों और सरकारों को गम्भीरता से लेना होगा।
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