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  •  परमार्थ निकेतन ऋषिकेश में पद्मासन  का विधिवत उद्घाटन और पूजन
  • संस्कृति, संस्कार, प्रकृति और परिवारों के माध्यम से भविष्य की रक्षा की अनूठी पहल
  • भारत और इंडोनेशिया के बीच सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने की बेहतरीन शुरूआत



ऋषिकेश:


विश्व पटल पर अपना एक उत्कृष्ट स्थान रखने वाले परमार्थ निकेतन आश्रम, ऋषिकेश के पवित्र परिसर में स्थापित पद्मासन  का आज विधिवत उद्घाटन हुआ।  परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती  महाराज, श्री कृष्णचन्द्र शास्त्री ठाकुर , जीवा की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती , श्री इंद्र उदयन , संस्थापक अध्यक्ष आश्रम गांधी पुरी, बाली, इंडोनेशिया, श्री एम आर केटुट डोंडर, विश्व हिन्दू परिषद्, इडे पेडान्डा बंग बुरूण मनुबा, धर्म अध्यक्ष हिन्दू धर्म इंडोनेशिया के प्रमुख, हरिजन सेवक संघ के अध्यक्ष प्रोफेसर श्री शंकर सान्याल , सोमा मन्दिर बाली, इंडोनेशिया से आया पंडितोें का दल और प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों ने पद्मासन  का विधिवत उद्घाटन और पूजन किया।


 स्वामी चिदानन्द सरस्वती  महाराज ने कहा कि पद्मासन  की स्थापना एक प्रतीक मात्र नहीं है बल्कि यह बालिनी संस्कृति का उत्कृष्ट उदाहरण है जो भारत और इंडोनेशिया के मध्य सांस्कृतिक सम्बंधों को एक नयी पहचान देगा। उन्होने कहा कि आज विश्व के विकास के लिये सामाजिक सामंजस्यता की जरूरत है। प्रकृति, पर्यावरण, जल जैसी वैश्विक समस्याओं के लिये जाति-धर्म और सीमाओं से उपर उठकर निष्पक्ष भाव से काम करने की आवश्यकता है।

अब हम सभी को सम्पूर्ण विश्व को एकता के सूत्र में बांधने के लिये; सद्भाव और शान्ति की स्थापना के लिये वचनबद्ध होना होगा। स्वामी जी महाराज ने कहा कि आध्यात्मिकता  में वह शक्ति है कि वह सभी विश्ववासियों को एकजुट कर सकती है; आध्यात्मिकता सभी को स्वीकार करने, गले लगाने पर जोर देती है। आध्यात्मिकता जीवन तथा वास्तविकता को अर्थ प्रदान करती है। आज वैश्विक स्तर पर विश्व में व्याप्त संस्कृतियों को आत्मसात करने की जरूरत है जिससे समावेशी समाज का निर्माण होगा साथ ही आपस में सकारात्मक बदलाव और भावनात्मक लगाव उत्पन्न होगा जिससे अनेक समास्याओं का समाधान अपने आप ही हो सकता है। मुझे पूरा विश्वास है किपद्मासन  की स्थापना के माध्यम से विश्व स्तर पर पवित्रता, शान्ति, सौहार्द्र और विश्व बंधुत्व का संदेश जायेगा।
 साध्वी भगवती सरस्वती  ने कहा कि गंगा के पावन तट पर विश्व की विभिन्न संस्कृतियों का समन्वय वास्तव में वसुधैव कुटुम्बकम् का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। उन्होने कहा कि परमार्थ निकेतन में प्रतिवर्ष विश्व के अनेक देशों से श्रद्धालु आते है जो यहां से एकत्व का संदेश लेकर जायेंगे। पद्मासन की स्थापना वास्तव में संस्कृतियों में मिलन का प्रतीक है।

 श्री इंद्र उदयन , संस्थापक अध्यक्ष आश्रम गांधी पुरी, बाली, इंडोनेशिया, ने कहा  कि हम बहुत सौभाग्यशाली है कि हमें भारत में परमार्थ निकेतन जैसा शान्तिदायक स्थान और हमारी संस्कृति को एक नयी पहचान मिली है। आज हमारे लिये बहुत ही गौरवशाली क्षण है कि हम गंगा के पावन तट और परमार्थ निकेतन के हृदय स्थल में पद्मासन को विराजमान कर रहे है।
 परमार्थ प्रांगण में पद्मासन  की स्थापना से आश्रम में भ्रमण करने आये श्रद्धालु भी अत्यंत उत्सुक थे सभी ने श्रद्धापूर्वक पद्मासन  के उद्घाटन और पूजन में सहभाग किया।

 पद्मासन  बालिनी मन्दिर में एक प्रकार का मन्दिर है। यह मूल रूप से एक खंभे के उपर एक खाली सिंहासन के आकार का है। बालिनी हिन्दू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण देवता के लिये इस आरक्षित रखा जाता है।पद्मासन  अर्थात सर्वोच्च भगवान की एक वेदी। पद्मासन  बाली का एक प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है। यह बाली के हिंदू लोगों के लिये ’’इडा संग ह्यंग विधी वासा’’ भगवान की पूजा करने के लिये एक मंदिर है।पद्मासन  स्थूल जगत या भुआना अगुंग ब्रह्माडं का प्रतीक और चित्र है। इंडोनेशिया के चारों ओर कई इमारतों में पद्मासन  पाया जा सकता है। पद्मासन, कावी भाषा (पुराने जावानीस) से आया यह दो शब्दों से बना है, पद्मा का अर्थ है कमल का फूल या केन्द्र और आसन का अर्थ है सिंहासन। पद्मासन  का अर्थ ब्रह्माण्ड की छवि जो इडा सांग हयांग विधी वासा का स्थान है। पद्मासन  का मुख्य कार्य सर्वशक्तिमान ईश्वर की पूजा करने का स्थान है।  पद्मासन   पर अंकित चिन्ह प्राकृतिक स्तरों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिन्हे हिन्दू लोग ट्राई लोका मानते हैं। त्रिलोक में भू लोक अर्थात पृथ्वी, भुव लोक (वायुमंडल) और स्व लोक अर्थात स्वर्ग शामिल हैं। इस प्रतीक को बेदावांग नाला (हिंदू पौराणिक कथाओं में बड़ा कछुआ) से अंताबोगा और बासुकी (दो ड्रैग) के साथ देखा जा सकता है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती  महाराज ने उपस्थित सभी प्रतिभागियों को प्रकृति, संस्कार और संस्कृति की रक्षा का संकल्प कराया सभी ने दिव्य गंगा आरती में सहभाग किया। स्वामी जी महाराज ने माँ गंगा के पावन तट पर बाली, इन्डोनेशिया से पधारे प्रतिनिधिमण्डल और पंडितों को शिवत्व का प्रतीक रूद्राक्ष का पौधा भेंट किया।

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