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देश के राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर अपने संदेश में कहा कि
बुद्ध पूर्णिमा के पावन अवसर पर, मैं सभी देशवासियों और विश्‍वभर में भगवान बुद्ध के अनुयायियों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देता हूं।
भगवान बुद्ध की शिक्षाओं में निहित अहिंसा, शांति, करुणा और सेवा के जीवन मूल्‍यों ने संपूर्ण मानव इतिहास तथा सभ्‍यताओं पर बहुत प्रभाव डाला है। वर्तमान में ये शिक्षाएं और अधिक प्रास‍ंगिक हो गई हैं।
मेरी कामना है कि भगवान बुद्ध के संदेश हमारे विचारों, शब्‍दों और कर्मों में समाहित होकर हमें करुणा, प्रेम और भाईचारे के मार्ग पर और आगे ले जाएं।

उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने बुद्ध पूर्णिमा के पावन अवसर पर देशवासियों को बधाई दी है। अपने संदेश में श्री नायडू ने कहा कि भगवान बुद्ध एक संदेश मेंउन्होंने कहा कि भगवान बुद्ध इस धरती पर अवतरित होने वाले सबसे महान आध्यात्मिक नेताओं में से थे। अहिंसा और करुणा का उनका शाश्वत संदेश दुनिया भर में मानवता को प्रेरित करता रहेगा।
श्री नायडू ने कहा बुद्ध पूर्णिमा के पावन अवसर पर मैं अपने देशवासियों को बधाई और शुभकानाएं देता हूंभगवान बुद्ध इस धरती पर अवतरित होने वाले सबसे महान आध्‍यात्मिक नेताओं में से थे। उन्‍होंने शाश्वत सत्‍य का उपदेश दिया था। अहिंसा और करुणा का उनका शाश्‍वत संदेश दुनिया भर में मानवता को मिलजुलकर एक बेहतर जीवन जीने तथा एक शांतिपूर्णसमावेशी और स्थिर विश्‍व के निमार्ण के लिए प्रेरित करता रहेगा। 

बैसाख  माह की पूर्णिमा को एक महान  व्यक्ति का धरती पर जन्म हुआ और वे महात्मा बुद्ध  कहलाये।  बुध पूर्णिमा  महात्मा बुद्ध की जयंती के रूप में मनाई जा रही है।   बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था, इसी दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और इसी दिन उनका महानिर्वाण भी हुआ था। बुद्ध का जन्म लुंबिनी, भारत (आज का नेपाल) में हुआ था। इस पूर्णिमा के दिन ही ४८३ ई. पू. में 80 वर्ष की आयु में, कुशीनगर में उन्होने निर्वाण प्राप्त किया था। वर्तमान समय में कुशीनगर उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जनपद का एक कस्बा है।
इसे देव संयोग कहेंगे की आज तक ऐसा किसी के साथ नहीं हुआ . भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति (बुद्धत्व या संबोधि) और महापरिनिर्वाण ये तीनों एक ही दिन अर्थात वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुए थे।बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार हैं। अतः हिन्दुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है। यह त्यौहार भारत, चीन, नेपाल, सिंगापुर, वियतनाम, थाइलैंड, जापान, कंबोडिया, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, इंडोनेशिया, पाकिस्तान तथा विश्व के कई देशों में मनाया जाता है। विश्व  भर  में बौद्ध धर्मावलम्बी  इस दिन को धूम धाम से मनाते है.
बौद्ध धर्म भारत  से ही निकला हुआ  धर्म और महान दर्शन है। ईसा पूर्व 6 वीं शताब्धी में गौतम बुद्ध द्वारा बौद्ध धर्म की स्थापना हुई है। बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में लुंबिनी, नेपाल और महापरिनिर्वाण 483 ईसा पूर्व कुशीनगर, भारत में हुआ था। उनके महापरिनिर्वाण के अगले पाँच शताब्दियों में, बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैला और अगले दो हजार वर्षों में मध्य, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी जम्बू महाद्वीप में भी फैल गया।

बौद्ध धर्म में प्रमुख सम्प्रदाय हैं: हीनयान, थेरवाद, महायान, वज्रयान और नवयान, परन्तु बौद्ध धर्म एक ही है एवं सभी बौद्ध सम्प्रदाय बुद्ध के सिद्धान्त ही मानते है। ईसाई धर्म के बाद बौद्ध धर्म दुनिया का दुसरा सबसे बड़ा धर्म हैं, दुनिया के करीब २ अरब (२९%) लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं। किंतु, अमेरिका के प्यु रिसर्च के अनुसार, विश्व में लगभग ५४ करोड़ लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी है, जो दुनिया की आबादी का 7% हिस्सा है। प्यु रिसर्च ने चीन, जापान व वियतनाम देशों के बौद्धों की संख्या बहुत ही कम बताई हैं, हालांकि यह देश सर्वाधिक बौद्ध आबादी वाले शीर्ष के तीन देश हैं। दुनिया के 200 से अधिक देशों में बौद्ध अनुयायी हैं। किंतु चीन, जापान, वियतनाम, थाईलैण्ड, म्यान्मार, भूटान, श्रीलंका, कम्बोडिया, मंगोलिया, लाओस, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया एवं उत्तर कोरिया समेत कुल 13 देशों में बौद्ध धर्म 'प्रमुख धर्म' धर्म है। भारत, नेपाल, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, रूस, ब्रुनेई, मलेशिया आदि देशों में भी लाखों और करोडों बौद्ध अनुयायी हैं।

तथागत बुद्ध का पहला धर्मोपदेश, जो उन्होने अपने साथ के कुछ साधुओं को दिया था, इन चार आर्य सत्यों के बारे में था। बुद्ध ने चार अार्य सत्य बताये हैं।

१. दुःख
इस दुनिया में दुःख है। जन्म में, बूढे होने में, बीमारी में, मौत में, प्रियतम से दूर होने में, नापसंद चीज़ों के साथ में, चाहत को न पाने में, सब में दुःख है।

२. दुःख कारण
तृष्णा, या चाहत, दुःख का कारण है और फ़िर से सशरीर करके संसार को जारी रखती है।

३. दुःख निरोध
तृष्णा से मुक्ति पाई जा सकती है।

४. दुःख निरोध का मार्ग
तृष्णा से मुक्ति अष्टांगिक मार्ग के अनुसार जीने से पाई जा सकती है।

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