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स्वामी चिदानन्द सरस्वती  ने माँ गंगा के तट पर भक्तों को कराया विशेष बुद्ध पूर्णिमा ध्यान

 स्वामी चिदानन्द सरस्वती  ने शांति, करूणा, सामंजस्य, सत्य और अहिंसा से युक्त जीवन जीने का दिया संदेश

ऋषिकेश:

 परमार्थ निकेतन में आज धूमधाम से बुद्ध पूर्णिमा मनाई गयी। परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज, मानस कथाकार संत मुरलीधर जी महाराज, जीवा की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती जी, परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों ने वेद मंत्रों से भगवान बुद्ध की मूर्ति का पूजन किया।
विश्व को शान्ति का मार्ग दिखाने वाले भगवान बुद्ध का जन्म बैसाख माह की पूर्णिमा को हुआ था। आज बौद्ध धर्म दुनिया के 200 से अधिक देशों में बौद्ध धर्म के अनुयायी है।


स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भगवान बुद्ध के विचार हर युग के लिये प्रासंगिक है। उनके द्वारा दिखाया मार्ग व्यक्ति को शान्ति और करूणा की ओर अग्रसारित करता है। उनके अनुसार अपनी शक्ति खुद बनें, वही शक्ति ईश्वर है। स्वामी जी ने कहा कि बौद्ध दर्शन का सूत्र वाक्य ’अप्प दीपो भव’ अर्थात अपना प्रकाश स्वयं बनो; अपना दीप स्वयं बनो। आत्मज्ञान से जीवन पथ पर आगे बढ़ों। जिसने भी इस तरह से जीवन जिया उसने एक मिसाल कायम की और इतिहास रच दिया। ऐेसे अनेक उदाहरण हैं, जो जीवन की यात्रा पर अकेले चले यथा शंकराचार्य जी, स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गांधी ऐसे अनेक उदाहरण हैं भारत में जिन्होंने विश्व को रास्ता दिखाया।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती महाराज ने श्री राम कथा के दिव्य मंच से भारत के युवाओं का आह्वान करते हुये कहा कि नियमित साधना और संयमित जीवनचर्या के साथ जीवन में सत्य और शान्ति के मार्ग पर बढ़ना ही वास्तविक प्रगति है और आज पूरे विश्व को इसकी आवश्यकता भी है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कथा के मंच से शान्तिमय जीवन जीने का संकल्प कराया। उन्होने कहा कि आज बुद्ध पूर्णिमा के दिन यहां से संकल्प लेकर जाये कि हमारी नदियों, जल स्रोतों, प्रकृति पर्यावरण को प्रदूषित नहीं करेंगे।


आज की मानस कथा में भारत साधु समाज के हाल ही में चुने गये नवीन कार्यकारी अध्यक्ष श्री मुक्तानन्द ब्रह्मचारी जी महाराज एवं स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने सहभाग किया। आज शाम को परमार्थ गंगा तट पर विश्व शान्ति हेतु विशेष हवन, गंगा आरती एवं दीपदान किया गया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज के सान्निध्य में परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों ने बुद्ध भगवान को पुष्प हार पहनाकर उनका पूजन, दिव्य संकीर्तन तथा बोधिवृक्ष लगाकर वृक्षारोपण का संकल्प कराया।

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