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द्वितीय नवरात्र माता ब्रह्मचारिणी, तप की प्रतिमूर्ति और सर्वथा सांसारिक सुखों को  करनेवाली  सनातन पपराभूता , महादेव को प्राप्त करने हेतु तपस्यारत महादेवी ही है. 

भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माता पार्वती ने इसी रूप में  घोर तपस्या की थी।  कठिन तपस्या के कारण,  देवी को तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया।

उन्हें त्याग और तपस्या की देवी माना जाता है। मां ब्रह्मचारिणी के धवल वस्त्र हैं। उनके दाएं हाथ में अष्टदल की जपमाला और बाएं हाथ में कमंडल सुशोभित है।


"दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमंडलु ।देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥"

शास्त्रों की मान्यता है कि भगवती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए एक हजार वर्षों तक फलों का सेवन कर तपस्या की थी। इसके पश्चात तीन हजार वर्षों तक पेड़ों की पत्तियां खाकर तपस्या की।

इतनी कठोर तपस्या के बाद इन्हें ब्रह्मचारिणी स्वरूप प्राप्त हुआ। भक्त इस दिन अपने मन को भगवती मां के श्री चरणों मे एकाग्रचित करके स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित करते हैं और मां की कृपा प्राप्त करते हैं।
ब्रह्म का अर्थ है, तपस्या, तप का आचरण करने वाली भगवती, जिस कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया है।

इनको ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी माना जाता है। छात्रों और तपस्वियों के लिए इनकी पूजा बहुत ही शुभफलदायी है, जिनका चन्द्रमा कमजोर हो तो उनके लिए मां ब्रह्मचारिणी की उपासना करना अनुकूल होता है।

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