चला फुलारी फूलों क सौदा सौदा फूल बिरौला। फूलदेई,छ्मा देई,ऐगे ऋतुरैणा।
राज्य उत्तराखंड के फसल त्योहार के रूप में जाना जाता है, फूल देई एक शुभ लोक त्योहार है जो राज्य में वसंत के मौसम का स्वागत करता है। यह त्यौहार हिंदू महीने, चैत्र के पहले दिन मनाया जाता है। त्योहार में भाग लेने के लिए युवा लड़कियां सबसे अधिक उत्साहित होती हैं। फूल देई सभी फूलों और वसंत ऋतु के बारे में है। कुछ स्थानों पर, त्योहार को कार्निवल के रूप में मनाया जाता है और उत्सव एक महीने तक चलता है। देई ’शब्द एक औपचारिक हलवा को संदर्भित करता है जो इस त्योहार में महत्वपूर्ण भोजन है जो गुड़ से बनाया जाता है। सफेद आटा और दही भी सभी को दिया जाता है।
युवा लड़कियाँ एक साथ इकट्ठा होती हैं और अपने गाँव / कस्बों में चावल, गुड़, नारियल, हरे पत्ते और फूलों से भरी प्लेटों के साथ हर घर में जाती हैं। इसके अलावा, इन लड़कियों ने "फूल देई, चम्मा देई, देनो देवर, भूर भाकर, वो देई से नमशकर, पूजे देवर" गाते हुए घरों की समृद्धि और खुशहाली की कामना की। बदले में, उन्हें मिठाई, गुड़ और पैसे जैसे आशीर्वाद और उपहार दिए जाते हैं।
इच्छा और आशीर्वाद भाग में युवा लड़कियों द्वारा घरों के दरवाजे पर फूल और चावल रखना भी शामिल है। गाँव के लोग वसंत के त्योहार को मनाने के लिए अपने लोक गीतों पर गाते हैं और नृत्य करते हैं और साथ ही अपने परिवार और रिश्तेदारों की समृद्धि और समृद्धि की कामना करते हैं।
मुख्य विशेषताएं:--
- गुड़ से बना हलवा त्योहार का प्रमुख व्यंजन है।
- यह त्योहार उन समुदायों के बीच के आंतरिक संबंध को दर्शाता है जो सभी पहाड़ियों में रह रहे हैं।
- गाँवों / कस्बों की युवा लड़कियों ने मौसम के पहले फूलों को तोड़ देते है और इन फूलों को अपने घर और अपने गाँव / कस्बे के अन्य घरों की दहलीज पर दहलीज़ पर बिखेर देते है
लोक गायक वसंत का अपने संगीत के साथ स्वागत करते हैं और उन्हें चावल और उपहार दिए जाते हैं।
भगवान सूर्य नारायण के कुम्भ राशि से मीन राशि में प्रवेश करने के साथ ही प्रारम्भ हुए चैत्र मास की संक्रांति की आपको बहुत बहुत बधाई।चैत्र मास प्रकृति में एक नयी ऊर्जा का संचार,होता हैं,पेड़ पौधों में नए नए रंग बिरंगे फूल आ रहे होते है,नयी हरियाली जन्म ले रही होती है,ठण्ड का मौसम लगभग खत्म हो चुका होता है ,सभी जीव जन्तुओ में एक नई ख़ुशी और ऊर्जा का संचार होता है,बसन्त ऋतु का वास्तविक आगमन इसी महीने होता है।इसी चैत्र मास से ही हिन्दू नववर्ष,विक्रमी सम्वत भी शुरू होता है,जो कि मातारानी के नवरात्रि के साथ शुरू होता है।हमारे उत्तराखण्ड में चैत्र मास का विशेष महत्व है क्योंकि आज से ही फूलदेई का त्यौहार शुरू होता है,छोटी छोटी लड़कियां ,बच्चे सुबह सुबह घरों की चौखट,देहरी ,गॉव के आसपास के जंगलों या फुलवाड़ी से तोड़कर ताजे फूल प लेकर ,फूलों से हर दरवाजे को सजाती है,जिससे उनको सम्मान के रूप में लोग दाल ,चावल और नकदी में दक्षिणा देकर उनका उत्साहवर्धन करते हैं, फूलदेई उत्तराखण्ड के पहाडों में खुशहाली के प्रतीक का त्यौहार है,जो कि आज से ही मतलब चैत्र संक्रांति से शुरू होता है।
फूलदेई त्यौहार के विषय में प्रचलित किवदंती
फूलदेई पर्व इसलिए मनाया जाता है क्यूंकि इस पर्व के बारे में यह कहा जाता है कि एक राजकुमारी का विवाह दूर काले पहाड़ के पार हुआ था,जहां उसे अपने मायके की याद सताती रहती थी।वह अपनी सास से मायके भेजने और अपने परिवार वालो से मिलने की प्रार्थना करती थी किन्तु उसकी सास उसे उसके मायके नहीं जाने देती थी । मायके की याद में तड़पती राजकुमारी एक दिन मर जाती है और उसके ससुराल वाले राजकुमारी को उसके मायके के पास ही दफना देते है और कुछ दिनों के पश्चात एक आश्चर्य तरीके से जिस स्थान पर राजकुमारी को दफनाया था , उसी स्थान पर एक खूबसूरत पीले रंग का एक सुंदर फूल खिलता है और उस फूल को “फ्योंली” नाम दे दिया जाता है और उसी की याद में पहाड़ में “फूलों का त्यौहार यानी कि फूल्देइ पर्व” मनाया जाता है और तब से “फुलदेई पर्व” उत्तराखंड की परंपरा में प्रचलित है |
साथ ही इस चैत्र मास में एक पुरानी परम्परा भी पहाडों के गांवो में शुरू होती है जो कि अब लगभग विलुप्ति की कगार पर है ,वो है लगमानी, वो ये है कि शादी शुदा लड़कियों के घरों में उनके मायके के (औजी) ढोलवादक जाकर उसके मायके की खुश खबरी देकर ध्याणी(शादीशुदा) महिला को खुश खबरी देते है साथ ही ढोल दमाऊ से खुशहाली के गीत गाकर उसके परिवार की खुशहाली की कामना करते हैं, जिससे खुश होकर अपने मायके के औजियों को ध्याणं और उसके ससुराल वाले सम्मान सहित विदा करते है।
एक टिप्पणी भेजें