ऋषिकेश ;
उत्तम सिंह
आधुनिक जीवन शैली में विलुप्त हो रहे उत्तराखंड का एक लोकपर्व फूलदेई संक्रांति का पर्व तीर्थ नगरी के आसपास के क्षेत्रों में पारंपरिक ढंग से मनाया जा रहा है तीर्थ नगरी के ग्रामीण क्षेत्रों में फूलदेई संक्रांति से पूरे माह तक दहलीज पर रंग बिरंगे फूल बिखरने की परंपरा भी है, जो गुरुवार को फूल देई संक्रांति से शुरू हो गई, ऋषिकेश शहर यूं तो महानगरी रूप ले चुका है और यहां भी जीवन शैली महानगरों की तरह बदलने लगी है मगर ऋषिकेश में रहने वाले गढ़वाल, कुमाऊं और जौनसार के अधिकांश लोग आज भी अपनी परंपराओं को पूरी शिद्दत के साथ निभा रहे हैं ऋषिकेश के हरिपुर कलां, रायवाला, श्यामपुर, छिददरवाला, गुमानीवाला, बापू ग्राम सहित मुनि की रेती, ढालवाला क्षेत्र में भी कई जगह फूलदेई संक्रांति के साथ पूरे माह वहां छोटे-छोटे बच्चे इस परंपरा को निभाते हैं शुक्रवार को फुल देई संक्रांति पर कई क्षेत्रों में नन्हे बच्चों ने समूह के साथ फूलदेई पर्व पर अपने आसपास के घरों की दहलीज पर परंपरा अनुसार बसंत में खिलने वाले रंग बिरंगे फूल बिखेरे। इसके साथ ही बच्चों द्वारा टोली में जाकर परंपराओं में रचे बसे गीत *फूलदेई, छम्मा देई, देनी द्वार भर भकार,ये देहली ते बारम्बार नमस्कार* गाते हुये घरों की समृद्धि और खुशहाली की कामना की।गढ़वाल महासभा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ राजे सिंह नेगी ने बताया कि फूलदेई संक्रांति हमारी परंपरा से जुड़ा त्यौहार है पहाड़ से पलायन के साथ हम अपनी संस्कृति विरासत को भी भुला रहे हैं जो हमारी समृद्ध संस्कृति के लिए नुकसानदेह है उन्होंने सभी लोगों से अपने लोक त्यौहार और परंपराओं का निर्वहन करने की अपील की।
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