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पश्चिम बंगाल के राज्यपाल श्री केशरीनाथ त्रिपाठी   ने कुम्भ में आये श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुये कहा कि ’’समुद्र मंथन के समय निकले अमृत की एक  बूंद  प्रयाग में भी गिरी थी वह केवल अमृत की बूंद नहीं थी बल्कि यह बूंद थी ।देश के अध्यात्म की; इस देश के संस्कृति की; इस देश के सर्वश्रेष्ठ मनोभावों को अमरत्व प्रदान करने वाली बुंद थी। आज उसी संस्कृति के आधार पर; उसी संस्कार के आधार पर हम अनादिकाल से कुम्भ मेले को मनाते चले आ रहे है। उन्होने कहा कि हर छः वर्ष और 12 वर्ष में लगने वाला कुम्भ हमारी प्रेरणा को ईश्वर से जोड़ता है; हमारे अन्दर श्रद्धा का भाव जागृत करता है। हम यहां संगम जो स्नान करते है।


 वह हमारा संगम में स्नान ही नहीं है बल्कि हमारे हृदय की शुद्धि का माध्यम है; हम स्नान के माध्यम से अपने को ईश्वर से जोड़ने की कोशिश करते है और इसका परिणाम होता है कि हमारे हृदय के अन्दर सात्विकता का भाव जगने लगता है। हम जय माँ गंगे कहते है तो हमारा हृदय पवित्र हो जाता है इसी पवित्रता के भाव से हम ईश्वर से जुड़ने की कोशिश करते है ।

तो हमारे अन्दर जितने सात्विक संस्कार है वह अपने आप उपजते है और हम उसे अपने व्यवहारिक जीवन में उपयोग करते है ताकि हमारा समाज सुन्दर समाज के रूप में विकसित हो। उन्होने कहा कि महात्मा गांधी जी का संदेश स्वच्छता, समरसता, शान्ति, सद्भावना यही गुण है ।

जो समाज को सुदृढ बनाता है।
 उन्होने कहा कि इस देश को सशक्त बनाने वाला कोई तत्व है तो वह हमारी आस्था है; इस देश को मजबूत और एक रखने वाला कोई तत्व है, तो वह हमारी आस्था है। कुम्भ एक अक्षुण्य त्यौहार है।

 प्रयागराज कुम्भ मेला आयुक्त डाॅ आशीष गोयल ने कहा कि कुम्भ मेला में सभी आयुवर्ग के लिये बहुत कुछ है। हमारे मुख्यमंत्री की परिकल्पना थी कि कुम्भ मेला दिव्य और भव्य हो। मेले में दिव्यता तो साधुसंतों के आगमन से आती है और भव्यता का प्रयास हमने किया है कि मेला भव्य होना चाहिये सुरक्षित होना चाहिये इस पर विशेष ध्यान दिया गया है। उन्होने कहा कि इस बार मेला में देखने के लिये बहुत कुछ है अध्यात्म के साथ स्वस्थ मनोरंजन के इंतजाम भी किये गये है।
 सभी विशिष्ट अतिथियों एवं श्रद्धालुओं ने संगम आरती में सहभाग किया।

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