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मतदाताओं की परेशानी का कारण बनता जा रहा है हाई टेक होता विधानसभा चुनाव

आधुनिक तकनीक का सहारा लेकर चुनावी जंग को तेज करने वालों की होड लगी हुई है। साइबर के जानकारों की सेवायें ली जा रहीं हैं। अतीत से लेकर वर्तमान तक को रेखांकित किये जाने वाले समाज सेवा से जुडे पहलुओं का जोर-शोर प्रचार करने की परम्परा तो अब पीछे ही छूट गयी है। मोबाइल पर स्वयं की आवाज में रिकार्ड किया संदेश भेजने से लेकर एसएमएस तक के नये हथकण्डे अपनाये जा रहे हैं। भावना प्रधान मध्यप्रदेश में लोगों को भावुक बनाने का क्रम जारी है। इसके लिए प्रशिक्षित लोगों की टीम दिन-रात काम कर रही है। किस क्षेत्र में कब और कौन सा पासा फैंकना है, इसका निर्धारण पहले से ही किया जा चुका है। आने वाले पांच दिनों में शगूफों की मारा-मारी होने वाली है। कहीं अफवाहों का बाजार गर्म करने की तैयारी चल रही है, तो कहीं सोशल मीडिया का उपयोग करके माहौल बनाने के लिए माथापच्ची हो रही है। विकास की वास्तविक रोशनी से वंचित जिलों में सब्जबाग दिखाने वालों की कमी नहीं है। वास्तविकता और बनावटीपन में विभेद करने वाले लोग अब केवल स्कूलों-कालेजों से ही नहीं निकले बल्कि गांव की चौपालों पर अनुभव के आधार पर भी तैयार होने लगे हैं। यह सत्य है कि विकास से दूर रहने वाले इलाके अपने शुभचिंतक के पक्ष में मत देने का मन बना चुके हैं, भले ही वह किसी भी दल के टिकिट पर या निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरा हो। तटस्थ रहने वाला बुद्धिजीवियों को व्यक्ति से अधिक पार्टी की नीतियों-रीतियों पर विश्वास है परन्तु वे भी अतीत की घटनाओं का मूल्यांकन करने से नहीं चूकते, जहां सभी एक समान ही दिखायी पडते है। कहीं रामजन्म भूमि को मुद्दा बनाकर जीवित रखने वाली पार्टी, तो कहीं टोपी-जनेऊ का दिखावा करने वाले दल। कहीं जातिगत मानसिकता में जकडी जमात, तो कहीं एक खास वर्ग की मसीहा बनकर अवतरित होने वाला सुप्रीमो। विकल्प के तौर पर दिखने वाले लोग आप की तरह विवादों में घिर कर विश्वास खोने लगते हैं। पूंजी के पति बन चुके नेताओं का दंभ भी चरम सीमा पर पहुंच गया है। चुनाव में मीठा बोलने वाले लोगों से बाद में मिलना भी सम्भव नहीं होता। उनके सिपाहसालारों का कहर तांडव करने लगता है। कथनी-करनी में अन्तर करने वालों के मुखौटे अब लगभग उतर चुके हैं। गांव में भी पार्टी से अधिक व्यक्ति के व्यक्तित्व-कृतित्व पर चर्चायें हो रहीं है। लोग सरल, सहज और सक्षम प्रत्याशी के पक्ष में मत देने का मन बना चुके हैं। आधुनिक तकनीक का प्रयोग करने वालों के रिकार्डिड फोन काल्स से लोग परेशान हो चुके हैं। मैसेज बाक्स में भरते जा रहे अनचाहे एसएमएस से फोन हैंग हो रहे हैं। वाट्सएप पर मधुमक्खियों की तरह आक्रमण के लिये तैयार बैठे बिन बुलाये मेहमान की तरह आये संदेशों के मध्य स्वजनों-परिजनों तक से सम्पर्क करना तक मुश्किल हो गया है। चुनाव मैनेजमेन्ट के ठेकेदारों द्वारा उपलब्ध कराये गये फोन नम्बर और ई-मेल एडेसेस का उपयोग करने वाले प्रत्याशी की आम आवाम के मध्य ऋणात्मक छवि बनानी शुरू हो गई है। बेब पोर्टल्स की लिंक्स भेजकर चुनाव कार्यालयों ने मतदाताओं की परेशानियां और बढा दीं है। कुल मिलाकर स्वयं को मत का वास्तविक हकदार बताने के चक्कर में प्रत्याशी की लोकप्रियता का ग्राफ नीचे की ओर सरकने लगा है। ऐसे में सीधा सम्पर्क करने वाले, रिश्तेदारों-मित्रों के माध्यम से प्रभावित करने वाले तथा अतीत में व्यक्तिगत रूप से हित करने वाले ही ज्यादा प्रभावी हो रहे है। आधुनिक तकनीक और संसाधनों का उपयोग करने वाले प्रत्याशी चन्द खाली बैठे लोगों के मनोरंजन का साधन भले भी बन रहे हों परन्तु व्यस्त व्यक्तियों के लिए परेशानी का कारण बनते जा रहे हैं।  
डा. रवीन्द्र अरजरिया

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