रुद्रप्रयाग
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चार धाम सडक परियोजना से रुद्रप्रयाग शहर का अस्तित्व समाप्त होने जा रहा है। करीब 315 भवन व व्यापारिक प्रतिष्ठान ध्वस्तीकरण की जद में हैं जिसको लेकर प्रशासन ने नोटिस भी जारी कर दिये हैं। नोटिस के बाद कई भवन स्वामी तो स्वयं ही अपने प्रतिष्ठानों को तोड रहे हैं वहीं प्रभावितों ने मांग की है पूर्व में स्वीकृत बद्रीनाथ बाईपास को बनाया जाय जिससे सैकडों परिवारों को बेघर होने से बचाया जा सके।
प्रभावित अमित रतूड़ी का कहना है कि चारधाम सडक परियोजना से रुद्रप्रयाग जनपद में सबसे अधिक तिलवाडा व रुद्रप्रयाग शहर प्रभावित हो रहे हैं। यहां पर पूरा बाजार ही चौडीकरण जद में है। और जिला प्रशासन ने भवन स्वामियों को नोटिस भी थमा दिये हैं और एक माह के भीतर अपने प्रतिष्ठानों को स्वयं तोडने की अपील भी है। जिसके चलते कई भवन स्वामियों ने अपने भवनों को तोडना भी शुरु कर दिया है।चौड़ीकरण के चलते रुद्रप्रयाग शहर के 315 भवनों को तोडा जाना है।
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चार धाम सडक परियोजना से रुद्रप्रयाग शहर का अस्तित्व समाप्त होने जा रहा है। करीब 315 भवन व व्यापारिक प्रतिष्ठान ध्वस्तीकरण की जद में हैं जिसको लेकर प्रशासन ने नोटिस भी जारी कर दिये हैं। नोटिस के बाद कई भवन स्वामी तो स्वयं ही अपने प्रतिष्ठानों को तोड रहे हैं वहीं प्रभावितों ने मांग की है पूर्व में स्वीकृत बद्रीनाथ बाईपास को बनाया जाय जिससे सैकडों परिवारों को बेघर होने से बचाया जा सके।
प्रभावित अमित रतूड़ी का कहना है कि चारधाम सडक परियोजना से रुद्रप्रयाग जनपद में सबसे अधिक तिलवाडा व रुद्रप्रयाग शहर प्रभावित हो रहे हैं। यहां पर पूरा बाजार ही चौडीकरण जद में है। और जिला प्रशासन ने भवन स्वामियों को नोटिस भी थमा दिये हैं और एक माह के भीतर अपने प्रतिष्ठानों को स्वयं तोडने की अपील भी है। जिसके चलते कई भवन स्वामियों ने अपने भवनों को तोडना भी शुरु कर दिया है।चौड़ीकरण के चलते रुद्रप्रयाग शहर के 315 भवनों को तोडा जाना है।
वहीं जोट सिंह बिष्ट का कहना है कि पूर्व में गढवाल संासद व तत्कालीन केन्द्रीय सडक परिवहन मंत्री रहे बीसी
खण्डूडी ने रुद्रप्रयाग शहर को बचाने के लिए जवाडी बाईपास का निर्माण
करवाया था। जिसे कि दो चरणों में पूरा होना था। प्रथम चरण में केदारनाथ
हाईवे को जोडा जाना था और दूसरे चरण में टनल व पुल के जरिये बद्रीनाथ हाईवे
को जोडा जाना था। प्रथम चरण का कार्य तो पूरा हो चुका है और दूसरे चरण की
भी सभी जांचे व प्रशासनिक कार्यवाहियां पूरी हो चुकी हैं। मगर कार्य को रोक
दिया गया। अब दूसरे चरण पर कार्य न होकर शहर को चैडीकरण में रखा गया है।
जिससे प्रभावितों की मांग है कि जब दूसरे चरण की सभी औपचारिक्ताएं पूरी हैं
तो फिर बसे बसाये प्रतिष्ठानों को क्यूं उजाडा जा रहा है।
चारधाम परियोजना का कार्य 2019 तक पूरा होना है ऐसे में प्रशासन भी नहीं
चाह रहा है कि टनल व ब्रिज का निर्माण हो जिसमें कि काफी समय भी लगना है।
ऐसे में प्रशासन के पास विकल्प के नाम पर शहर को तोडना ही बचा है मगर बडा
सवाल यह है कि एक ब्रिज व नौ सौ मीटर टनल के जरिये जब सैकडों परिवारों को
बेघर होने से बचाया जा सकता है तो फिर सरकार के नुमांइंदे आखिर क्यूं
चुप्पी साधे हैं।
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