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रुद्रप्रयाग;
भूपेंद्र भण्डारी
पर्वतीय क्षेत्रों में पशुपालन का व्यवसाय किस तरह से घट रहा है इसका सीधा उदाहरण है। गुलाबराय स्थित एतिहासिक भैंस व बैल मण्डी। कई दशकों से रुद्रप्रयाग, चमोली, पौडी, टिहरी व कुमांयू क्षेत्र के हिस्सों से पशुपालक इस मण्डी में पहुंचते थे और बैलों व भैंसों की खरीददारी करते थे। मगर बदलते परिवेश में मण्डी धीरे-धीरे सिमटती जा रही है और अब यहां चन्द जानवर ही देखने को मिल रहे हैं। 
  टिहरी से आये पशुपालक  कुन्दन दास का कहना है कि कभी  सैकडों हजारों जानवरों से गुलजार रहने वाली गुलाबराय की ऐतिहासिक भैंस व बैल मंण्डी आज वीरान पडी हुई है। रोजगार के अभाव में गांव खाली हो रहे हैं तो ऐसे में पशुपालकों की संख्या भी लगातार घट रही है। जिसका सीधा असर पशुपालन व्यवशाय पर पड रहा है और काश्तकारों की आर्थिकी पर इसका सीधा प्रभाव पड रहा है।  

स्थानीय लोगों कैलास देवली और बुद्विबल्लभ मंमगांईस्     का कहना है कि रोजगार की एक प्रमुख मण्डी अब सिमटती जा रही है। दशकों से चली आ रही इस ऐतिहासिक मण्डी को बचाने के लिए सरकारी स्तर पर कोई प्रयास न होने का ही कारण है कि ग्रामीणों का पशुधन से मोह भंग हो रहा है। मानसून काल शुरु होते ही यह मण्डी जानवरों से गुलजार हुआ करती थी मगर जगह की अन उपलब्धता व संसाधनों के अभाव में पशुपालक अब मण्डी की और रुख नहीं कर रहे हैं। 

स्थानीय रोजगार विशेषज्ञ लक्ष्मण रावत  का मानना है कि मण्डी के सिमटने से स्थानीय रोजगार भी प्रभावित हो रहे हैं मण्डी के कारण यहां वाहन चालकों, स्थानीय भवन स्वामियों, होटल व्यवसायियों , चारा पत्ती लाने वाली महिलाओं व स्थानीय  दुग्घ व व्यवसाय पर सीधा असर पडा है।
जनता का कहना है कि सरकार को चाहिए कि इस तरह की मण्डियों को पुर्नजीवित कर रोजगार के अवसरों को बचाये रखने की कार्ययोजना बनाई जाय।
प्रदेश सरकार गांवों को बसाने व पलायन को रोकने के लिए ग्राम्य विकास की नीतिया ंतो कागजों में तय कर रही हैं मगर यहां की स्थितियों के अनुरुप संचालित व्यवशायों के संरक्षण की दिशा में कोई भी ठोस कार्ययोजना तय नहीं कर पा रही है। जिसके चलते  आज हजारों काश्तकारों से जुडी गुलाबराय मण्डी सिमटती जा रही है। 

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