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टिहरी गढवाल (उत्तम सिंह)
आपने बचपन मे  परियो कहानी बहुत सुनी होगी । इसमें कुछ काल्पनिक और कुछ मनगढ़ंत होती है । हम आज आपको खैट पर्वत के बारे मे स्थानीय लोगों द्वारा सुनी गयी परियो की कहानी से अवगत करा रहे है।
हम  बात कर रहे  उत्तराखण्ड के   टिहरी जिले के फेगुल पट्टी स्थिति थात गांव से 4 किमी की पैदल दूरी तय करने के पश्चात  स्थित खैट पर्वत पर बने खैट खाल मंदिर में देवियों (अप्सराओं) का प्रमुख निवास स्थल है।गढ़वाल एरिया में वनदेवियों को आछरी-मांतरी के नाम से जाना जाता है।
मान्यता है कि यहां आंछरियों को जो लोग पसंद आते हैं वे उन्हें मूर्छित करके अपने पास रख लेती हैं व अपने लोक में ले जाती हैं । कहते हैं कि यहां पर आवाज करना प्रतिबंधित हैं ।नहीं तो आंछरियां आपको अपना बना लेंगी ।
खैट पर्वत के चरण स्पर्श करती भिलंगना नदी का दृश्य देखते ही बनता है । खैट गुंबद आकार की एक मनमोहक चोटी है । इस पहाड़ के आस-पास कोई व पहाड़ नहीं है ।
इसलिए विशाल मैदान में स्थित यह अकेला पर्वत अद्भुत दिखाई देता है . बोला जाता है कि खैट पर्वत की नौ श्रृंखलाओं में नौ देवियों (आंछरियों/परियों) का वास है । माना जाता है कि यह नौ देवियां नौ बहनें हैं । जो आज भी यहां अदृश्य शक्तियों के रूप में यहां निवास करती हैं

आधुनिकाता की चकाचौंध में इतने मस्त हो गए है कि हम अपने देवी-देवताओं का मानते तो है पर खानापूर्ति की तरह। यही कारण है कि हम अपने जीवन के लक्ष्य में सफल नहीं हो पा रहे है। क्योंकि आधुनिकता की चमक ने हमारी तीसरी ऑख पर पर्दा डाल दिया है। हम यह नहीं देख पा रहे है कि जिस देवभूमि के हम निवासी है वहा देवताओं ने हमे भी वह शक्तियां दी है जो देवों के पास है पर हम है कि मानते ही नही और चल रहे हैं अंधी दौढ में।

उत्तराखंड सदियों से देश विदेश के लाखो लोगों की आस्था का ही केंद्र नहीं रहा है बल्कि यहां के रहस्यों से भी हैरान है, लेकिन हम न जाने क्यों यह भूल रहे हैं।आज बात करते ळै खैट पर्वत की कहते है कि यहां अप्सराओं का वास है और इसे आज भी देखा जा सकता है। वरिष्ठ पत्रकार मनोज ईष्टवाल तो यहां कई बार गए और इसका जिक्र कर चुके हैं। आइए इसी के बारे में थोडा जानकारी लेते हैं।

टिहरी जिले में स्थित खैट पर्वत वनदेवियों (अप्सराओं) का प्रमुख निवास स्थल है। देवलोक से भू-लोक तक रमण करने वाली ये परियां हिमालय क्षेत्र में वनदेवियों के रूप में जानी जाती हैं। गढ़वाल क्षेत्र में वनदेवियों को आछरी-मांतरी के नाम से जाना जाता है। कठित भौगोलिक परिस्थितियों के बीच किसी प्राकृतिक आपदा व अनर्थ से बचने के लिए पहाड़वासी वनदेवियों को समय-समय पर पूजते हैं। इससे ये वनदेवियां खुश रहती हैं।

उल्लेखनीय है कि गढ़वाल कुमाऊं का जनमानस तो अच्छे से जानता होगा कि उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल के फेगुलीपट्टी के थात गॉव की सीमा पर अवस्थित 10000 फिट उंचाई की पर्वत श्रृंखला खैट पर्वत में परियों का वास है.खैट पर्वत पर्यटन व तीर्थाटन की दृष्टि से मनोरम है। खैट पर्वत समुद्रतल से 10 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। खैट पर्वत के चरण स्पर्श करती भिलंगना नदी का दृश्य देखते ही बनता है। खैट गुंबद आकार की एक मनमोहक चोटी है।

खैट खाल मंदिर है रहस्यमयी शक्तियों का केंद्र.

इस चोटी में मखमली घास से ढका एक खूबसूरत मैदान है। जहां से दृष्टि उठाते ही सामने क्षितिज में एक छोर तक फैली हिमचोटियों के भव्य दर्शन होते हैं। आसपास दूर-दर तक कोई दूसरा पर्वत शिखर न होने से यह इकलौता लघुशिखर अत्यंत भव्य मैदान पर पहुंचकर ऐसा आभास होता है मानों हम वसुंधरा की छत पर पहुंच गए हैं। दिल इस पर्वत शिखर से लौटने की अनुमति आसानी से नहीं देता है।क्योंकि बागड़ी गॉवके जीतू बगडवाल व साली भरूणा का प्रेम प्रसंग, जीतू की बांसुरी व परियों द्वारा दिन दहाड़े खेतों में धान की रोपाई करते हुए हल बैल सहित जीतू बगड्वाल के हरण की गाथा अभी ज्यादा पुरानी नहीं हुई है. कहते है कि थात गॉव से 5किमी दूरी पर स्थित खैट खाल मंदिर है रहस्यमयी शक्तियों का केंद्र. है।

 खैट पर्वत की नौ श्रृंखलाओं में है नौ देवियों  का है वास

यहां के बारे में वरिष्ठ पत्रकार मनोज ईष्टवाल लिखते है कि  खैट पर्वत की नौ श्रृंखलाओं में है नौ देवियों (आंछरियों/परियों) का निवास स्थल, जिसे भराड़ी देवी भी कहा जाता है. यहाँ दिखेंगी आपको दीवारों ऊँची चट्टानों पर उल्टी ओखल, यहाँ मिलेगी लहसुन की खेती. अखरोट के बागान (पीड़ी पर्वत) लुकी पीड़ी पर्वत पर माँ बराडी का मंदिर गर्भ जोन गुफा जिसका आदि न अंत. चौखुडू चौन्तुरु (जहाँ आंछरियाँ नृत्य कला का प्रदर्शन करती हैं व खेल खेलती हैं. भूलभुलैय्या गुफा जहाँ नाग आकृतियाँ उकेरी हुई हैं. नैर-थुनैर नामक दो वृक्ष जिसके पत्तों से महकती है अजीबोगरीब खुशबु.कहीं ये वही ऐडि-आंछरी/ योगिनियाँ/रणपिचासनियाँ तो नहीं जो जिन्होंने अंधकासुर दैन्त्य बिनाश में महादेव कैलाशपति का साथ दिया था और कुछ कैलाश जाने की जगह यहीं छूट गयी थी. कहीं ये वही कृत्या सुकेश्वरी नामक योग्निया/परियां तो नहीं जिन्होंने दैन्त्यों के रक्त से अपनी भूख मिटाई थी.

नियम संयम व बिना शराब कबाब शबाब के

उनका मानना है कि प्राचीनकाल से ही इस स्थान पर इन बुग्यालों में चिल्लाना, चटक कपडे पहनना, बेवजह वाद यंत्र बजाना, प्रकृति विपरीत कार्य करना पूर्णत: प्रतिबंधित है. इसलिए वही चले जो तीन दिन तक नियम संयम व बिना शराब कबाब शबाब के रह सके.  खैट से दिखने वाले प्रमुख हिमशिखरों में बंदरपूंछ, गंगोत्री, स्वर्गारोहणी, यमुनोत्री, भृगुपंथ, सत्तापंथ, त्रिशुल, चैखंबा, हाथी पर्वत, स्फाटिक जौली, ऐंच्वा खतलिंग आदि शामिल हैं। टिहरी जिले की आरगढ़, गोनगढ़, केमर पट्टी व भिलंगना घाटी का वृहद क्षेत्र यहां से दृष्टिगोचर होता है।



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