रुद्रप्रयाग:
जनपद के अंतिम गांव गौण्डार से करीब 18 किमी की दुर्गम चढ़ाई के बाद आता है मदमहेश्वर धाम। मान्यता के अनुसार यहां पर भगवान शिव के मध्यभाग नाभि रुप के दर्शन होते हैं। अति कोमल भाग होने के कारण यहां स्थित शिव लिंग पर मुख्य पुजारी के अतिरिक्त कोई भी हाथ नहीं लगा सकता है। यहां केी परंपरा है कि यहां बाबा के पहुचने से पहले ही कपाट खोल दिये जाते हैं और इस दौरान धाम में महज ठौर भण्डारी के अतिरिक्त कोई भी मौजूद नहीं रहता हैं भगवान की डोली देवदर्शनी में इंतजार करती है और जब ठौर भण्डारी शंख घ्वनि करते हैं तब ही डोली व श्रद्वालु धाम में जाते हैं। मान्यता है कि यहां पर भगवान का बडा ताम्र भण्डार है और उसकी जानकारी सिंर्फ ठौर भण्डारी को रहती है।
भगवान यहां पहुचकर सबसे पहले अपने भण्डार का निरीक्षण करते हैं और अगर एक भी बर्तन कम हो गया तो भगवान की डोली मंदिर के अन्दर प्रवेश नहीं करती है। यही नहीं यहां डोली के साथ वाद्य यंत्र भी नहीं बजते हैं। महज शंख ध्वनि के साथ ही भगवान की डोली चलती है।
देखिये, मद्महेश्वर से भूपेन्द्र भण्डारी की खास रिपोर्ट-
आस्था व परंपरा ही है कि आज भी देवभूमि में हर वर्ष लाखों की तादाद में यहां के धार्मिक स्थलों के दशनों को देश विदेशों से श्रद्वालु पहुंचते हैं और अपनी मनौतियाँ को पूर्ण करते हैं। ऐसा ही एक शिव धाम है जहां आज भी परंपराओं का पूरी तरह से निर्वहन होता है। यह धाम है द्वितीय केदार के रुप में पूजित भगवान मध्यमहेश्वर का । जहां पर भगवान के नाभि भाग की पूजा होती है और यहां पर विवाह के बाद भगवान शिव व माता पार्वती ने कैलाश गमन से पूर्व एक रात्रि प्रवास किया था।
जनपद के अंतिम गांव गौण्डार से करीब 18 किमी की दुर्गम चढ़ाई के बाद आता है मदमहेश्वर धाम। मान्यता के अनुसार यहां पर भगवान शिव के मध्यभाग नाभि रुप के दर्शन होते हैं। अति कोमल भाग होने के कारण यहां स्थित शिव लिंग पर मुख्य पुजारी के अतिरिक्त कोई भी हाथ नहीं लगा सकता है। यहां केी परंपरा है कि यहां बाबा के पहुचने से पहले ही कपाट खोल दिये जाते हैं और इस दौरान धाम में महज ठौर भण्डारी के अतिरिक्त कोई भी मौजूद नहीं रहता हैं भगवान की डोली देवदर्शनी में इंतजार करती है और जब ठौर भण्डारी शंख घ्वनि करते हैं तब ही डोली व श्रद्वालु धाम में जाते हैं। मान्यता है कि यहां पर भगवान का बडा ताम्र भण्डार है और उसकी जानकारी सिंर्फ ठौर भण्डारी को रहती है।
भगवान यहां पहुचकर सबसे पहले अपने भण्डार का निरीक्षण करते हैं और अगर एक भी बर्तन कम हो गया तो भगवान की डोली मंदिर के अन्दर प्रवेश नहीं करती है। यही नहीं यहां डोली के साथ वाद्य यंत्र भी नहीं बजते हैं। महज शंख ध्वनि के साथ ही भगवान की डोली चलती है।
बाबा मद्महेश्वर को अपना पिता मानने वाली केन्द्रीय मंत्री उमा भारती भी
यहां हर वर्ष आती है और धाम को अपना मायका मानती है। उनके अनुसार यह सबसे
अलौकिक धाम है जहां पर शिव व पार्वती दोनों मौजूद हैं।
अति दुर्गम होने के बावजूद भी यहां छह महीने यहां भक्तों की भीड लगी रहती
है और मान्यता है कि यहां पर जो भी सच्चे दिल से मनौती मांगता है वह जरुर
पूरी होती है यही कारण है कि आज भी यहां की अनूठी परंपराओं के कारण यहां के
जनमानस में भगवान के प्रति सच्ची श्रद्वा है।
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