डोईवाला/जॉलीग्रांट:
- एसआरएचयू में बतौर कुलपति सलाहकार डॉ.प्रकाश केशवया के निर्देशन में मशीन तैयार की गई
- विदेशी मशीन की तुलना में स्वदेशी मशीन करीब 30 फीसदी सस्ती
अब देश में ही निर्मित हीमोडायलिसिस मशीन से
मरीजों का डायलिसिस किया जाएगा। बैंगलोर की रैनालिक्स कंपनी ने डायलिसिस की पहली
स्वदेशी मशीन तैयार की है। मशीन के निर्माण में स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय (एसआरएचयू)
में बतौर कुलपति सलाहकार व बायोमेडिकल साइंटिस्ट डॉ.प्रकाश केशवया का निर्देशन
अहम रहा।
डॉ.प्रकाश केशवया ने बताया कि मशीन का मैसूर में
सफल परीक्षण किया जा चुका है। जल्द ही बाजार में ये मशीन बिक्री के लिए उपलब्ध
होगी। उन्होंने कहा कि 30 साल से अधिक समय से वह डायलिसिस के क्षेत्र में काम कर
रहे हैं। मरीज के लिए डायलिसिस बेहद पीड़ादायक होता है साथ ही विदेशी मशीन होने के
नाते इस पर खर्चा भी अधिक होता है। लिहाजा, बड़े हॉस्पिटलों में ही डायलिसिस हो
पाता है। इस कारण डायलिसिस के लिए गांव व छोटे शहरों से मरीजों को डायलिसिस के लिए
शहर आना पड़ता था। उनका उद्देश्य मरीजों के इस पीड़ा को कम करना था। डायलिसिस मशीन
के स्वदेश में निर्माण के लिए कई सालों की रिसर्च काम आई। डॉ.केशवया बताते हैं कि
बैंगलोर की रैनालिक्स कंपनी के सहयोग से स्वदेश में पहली हीमोडायलिसिस मशीन बनकर
तैयार हो चुकी है। विदेशी मशीनों की तुलना में यह करीब 30 फीसदी तक
सस्ती होगी।
स्वदेशी मशीन से ये होंगे फायदे-
-विदेशी मशीन की तुलना में हाईटेक और 30 फीसदी
सस्ती
-मशीन सस्ती होने से डायलिसिस की कीमत भी घटेगी
-कीमत कम होने से बेसिक स्पेशियलिटी हॉस्पिटल भी
खरीद सकेंगे मशीन
-मरीजों के लिए डायलिसिस कराना होगा आसान और
सस्ता
डायलेजर को मल्टीपल यूज करने के लिए बनाई डिवाइस
इससे पहले भी डॉ.प्रकाश केशवया ने कई पेटेंट अपने
नाम किए। इसमें मुख्य रुप से उनके द्वारा डायलेजर के मल्टीपल यूज के लिए बनाई गई
डिवाइस है। डायलिसिस के दौरान डायलेजर ब्लड का फिल्ट्रेशन करता है। पहले डायलेजर का
इस्तेमाल सिर्फ एक ही बार किया जा सकता था। इससे हर बार डायलिसिस कराने पर मरीजों
को नया डायलेजर खरीदना पड़ता था। इस कारण डायलिसिस की कीमत बढ़ जाती थी। डॉ.प्रकाश
केशवया ने मरीजों की इस मुश्किल का हल निकाला। कड़ी रिसर्च के बाद उन्होंने
डायलेजर के लिए वो डिवाइस बनाई जिससे उसे क्लीनिंग, टेस्टिंग के बाद स्टीयराइल्ज
कर संक्रमण के खतरे से बचाया जा सकता है। इससे एक डायलेजर को कम से कम आठ से 10
बार डायलिसिस किया जा सकता है।
आईआईटी मद्रास के एल्युमिनाई छात्र हैं डॉ.प्रकश
केशवया
आईआईटी मद्रास से बीटेक मैकेनिकल इंजीनियरिंग
करने के बाद अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा से मैकेनिकल
इंजीनियिरिंग में मास्टर ऑफ साइंस (एसएस) किया। इसके बाद उन्होंने बायोमेडिकल शोध
के क्षेत्र में पीएचडी की। यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा से ही उन्होंने शरीर विज्ञान
के क्षेत्र में एमएस किया। 15 सालों की एकेडमिक रिसर्च के बाद डॉ.प्रकाश केशवया अमेरिका
के शिकागो शहर में स्थित बैकस्टर हेल्थकेयर कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट बन गए। इस
दौरान उन्होंने 130 शोधपत्र प्रकाशित व नौ पेटेंट प्रदान किए। डॉ.केशवया को भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय
योग्यता छात्रवृत्ति, आईआईटी मद्रास ने योग्यता छात्रवृति, इंटरनेशनल
सोसायटी ऑफ पेरिटोनियल डायलिसिस ने जीवन समय मानद सदस्य, राष्ट्रीय
गुर्दा फाउंडेशन के अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
20 सालों से कर रहे हैं मरीजों की निशुल्क स्वैच्छिक
सेवा
डॉ.प्रकाश केशवया एचआईएचटी संस्थापक डॉ.स्वामी
राम के अनुयायी हैं। 1998 में अमेरिका की हाई-प्रोफाइल कंपनी को छोड़ वह भारत में निशुल्क
स्वैच्छिक सेवा के मकसद से हिमालयन इंस्टिट्यूट जौलीग्रांट आ गए। यहां पर उन्होंने
डायलिसिस यूनिट की स्थापना में अहम योगदान दिया। इसके अलावा किडनी ट्रांसप्लांट
सुविधा को शुरू करने के लिए जरूरी संसाधनों को जुटाए।
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