अंकित तिवारी-
वर्तमान में विश्व की तेजी से बढ़ती जनसंख्या शहरीकरण की जरूरतों की पूर्ति के लिए जल का अविवेकपूर्ण दोहन और जल प्रदूषण से पीने योग्य जल की मात्रा तेजी से घट रही है। भूमिगत जल का स्तर नीचे चला जा रहा है नदी,नाले,तालाब सूखते जा रहे हैं परंपरागत जल स्रोत नष्ट होते जा रहे हैं। विश्व जल आयोग की हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि सन 2025 तक संपूर्ण विश्व में गंभीर जल संकट उत्पन्न हो जाएगा कुछ जल विशेषज्ञों ने तो यहां तक कह दिया कि आगामी 21वीं शताब्दी में जल विवाद को लेकर विश्व में कई देशों के मध्य युद्ध की नौबत आ सकती है। हमारे देश का भी अपने पड़ोसी देशों नेपाल, पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ अभी जल विवाद चल रहा है। भारत के कई राज्यों के मध्य भी जल विवाद चरम पर है। अब समय आ गया है कि जल संकट से बचाने के लिए हम सबको मिलकर कार्य करना होगा।
अब हमें पानी के लिए सरकार पर अतिनिर्भरता छोड़नी होगी, स्वयं को जल प्रबंधन करना होगा। इसके लिए सर्वप्रथम हमें परंपरागत जल संग्रहण विधियों को अपनाना होगा। प्राचीन जल स्रोतों ,तालाब, कुएं, बावड़ियों का जीणोद्धार करना होगा। उनकी सफाई के लिए कार सेवा करनी होगी । उसके जल प्रवाह वाले मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करना होगा । नदियों , तालाबों, झीलों, बावड़ियों को मल मूत्र व कूड़े-करकट व औद्योगिकीकरण के प्रदूषित जल से इन्हें बचाना होगा। अधिकाधिक वृक्षारोपण करें जिससे जल प्रवाह की गति धीमी होने से भूजल का स्तर बढ़ेगा, ज्यादा वर्षा होगी ,बाढ़ पर अंकुश भी लगेगा। बड़े बड़े बांधों के स्थान पर छोटे-छोटे बांध बनाए जाएं गांव-गांव में तालाब खोले जाएं। तालाब हमारे लिए बहुउपयोगी सिद्ध होंगे। तालाबों से पेयजल मिलेगा, सिंचाई होगी, भूमिगत जल स्तर बढ़ेगा, बाढ़ पर अंकुश लगेगा ,तालाबों से मछली पालन को बढ़ावा मिल सकेगा। सरकार को चाहिए कि वह बड़े-बड़े बांध बनाने की प्रवृति छोड़े ।बड़े बांध बनाने से जहां एक और लाखों एकड़ भूमि बेघर हो जाती है , वन और वन्य जीवों का विनाश होता है, वहीं दूसरी ओर लाखों लोगों को बेघर होना पड़ता है उन्हें अपनी मिट्टी से बेदखल किया जाता है। क्या यह विकास का मार्ग है ? बांध बन जाने से बांध के आगे आने वाले भागों में गंभीर पेयजल व रोजी,रोटी का भी संकट खड़ा हो जाता है । क्या कभी सरकार ने इस पर विचार किया?
आम जनता को भी जल का दुरुपयोग रोकना होगा। पानी को व्यर्थ में ना बढ़ाएं तथा इस बात को हम सबको याद रखनी होगी कि जल ही जीवन है। स्वयंसेवी संस्थाओं को भी आगे आना होगा। इसमें प्रसार माध्यम यथा दूरदर्शन, रेडियो समाचार पत्र आदि भी जनता में जल के विवेकपूर्ण उपयोग के प्रति जागरूकता या जन चेतना जागृत करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
अंकित तिवारी
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार है)
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