वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को गंगा का जन्मोत्सव "गंगा सप्तमी" के नाम से मनाया जाता है. जिस दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई वह दिन गंगा जयंती (वैशाख शुक्ल सप्तमी) और जिस दिन गंगाजी पृथ्वी पर अवतरित हुई वह दिन 'गंगा दशहरा' (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी) के नाम से जाना जाता है। आज के दिन मां गंगा के ध्यान स्नान का दिन है। भागीरथ के अथाह प्रयास और उनके पूर्वजों के बलिदान के सामने भगवान को झुककर ,गंगा को पृथ्वी पर भेजना ही था. गंगा के पवन चरणों के पृथ्वी पर पड़ते ही, भागीरथ के समस्त कर्म फलीभूत हुए और उनके पूर्वजों की आत्मा को शांति भी मिली.
गंगा सप्तमी अनेको गंगा स्नान की भांति अपना विशेष महत्त्व रखता है. माँ गंगा तो इस लोक के समस्त लोक की पीड़ा को अपने अंदर समाहित क्र लेती है. परन्तु क्या हमने गंगा के प्रति अपने दायित्व को समझा है. गंगा के तट पर आकर पूर्वजों को तरपान कर अपने स्वयं के मोक्ष की कामना तो हम सभी करते है. परन्तु क्या हमने ये जाना कि गंगा को स्वच्छ रखने की मुहीम क्यों सफल नहीं होती। क्यों? पुण्यदायनी माँ गंगा समस्त भारत में शोषित है, पीड़ित है. हमने तीर्थ स्थानों में स्नान ही नहीं वहां ऐश्वर्य पाने की इच्छा में , गंगा को दूषित किया है. हम उन होटलों में रहते है, जहाँ का सीवर सीधे गंगा में जाता है
. हम गंगा के तट पर अनावश्यक प्लास्टिक और कूड़ा छोड़ आते है. हम पुरानी मूर्तियों को गंगा में विसर्जित करते है. हम गंगा के २०० मीटर के दायरे को अतिक्रमित कर लेते है. यही कारण है आपको मोक्ष प्रदान करने वाली गंगा एक दिन स्वयं को लुप्त होने से नहीं बचा पायेगी. निरर्थक ज्ञान की और दम्भ की अति ने गंगा को ऐसे मुहाने पर लेकर खड़ा कर दिया है ,कि वो दिन दूर नहीं जब गंगा सभी से मुंह फेर लेगी.
गंगा सप्तमी अनेको गंगा स्नान की भांति अपना विशेष महत्त्व रखता है. माँ गंगा तो इस लोक के समस्त लोक की पीड़ा को अपने अंदर समाहित क्र लेती है. परन्तु क्या हमने गंगा के प्रति अपने दायित्व को समझा है. गंगा के तट पर आकर पूर्वजों को तरपान कर अपने स्वयं के मोक्ष की कामना तो हम सभी करते है. परन्तु क्या हमने ये जाना कि गंगा को स्वच्छ रखने की मुहीम क्यों सफल नहीं होती। क्यों? पुण्यदायनी माँ गंगा समस्त भारत में शोषित है, पीड़ित है. हमने तीर्थ स्थानों में स्नान ही नहीं वहां ऐश्वर्य पाने की इच्छा में , गंगा को दूषित किया है. हम उन होटलों में रहते है, जहाँ का सीवर सीधे गंगा में जाता है
. हम गंगा के तट पर अनावश्यक प्लास्टिक और कूड़ा छोड़ आते है. हम पुरानी मूर्तियों को गंगा में विसर्जित करते है. हम गंगा के २०० मीटर के दायरे को अतिक्रमित कर लेते है. यही कारण है आपको मोक्ष प्रदान करने वाली गंगा एक दिन स्वयं को लुप्त होने से नहीं बचा पायेगी. निरर्थक ज्ञान की और दम्भ की अति ने गंगा को ऐसे मुहाने पर लेकर खड़ा कर दिया है ,कि वो दिन दूर नहीं जब गंगा सभी से मुंह फेर लेगी.
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