भयंकर कमर दर्द और स्लिप डिस्क की परेशानियों से जूझ रहे लोगों के लिए सुखद नुस्खा , आज़माएँ और सभी को बताएं
सब से पहले आप ग्वार पाठ (एलो वेरा) लीजिये इसको पहले शोध ले। शोध की विधि नीचे बताई गयी हैं। इसका छिलका उतार ले और गुद्दा को कुचल कर बारीक कर ले अब इस में अंदाज़ से आटा मिला ले और इसको देसी घी में भून कर खांड मिला कर हलवा बना ले और 20-20 ग्राम के लड्डू बना ले। ज़रूरत अनुसार तीन से चार हफ्ते तक सुबह खाली पेट खाए। इस से भयंकर से भयंकर कमर दर्द और स्लिप डिस्क में आराम मिलता हैं। ग्वार पाठे के गुणों के कारण ही इस की सब्जी अक्सर गाँवों में बनायीं जाती हैं। ग्वार पाठे के उपयोग से शीघ्र पतन के रोगियों को भी बहुत फायदा होता हैं। ठे के लिए ज़रूरी हैं के इसको ऐसी जगह से लिया जाए जहाँ पर सफाई हो और प्रदुषण से मुक्त स्थान हो, क्युकी इसमें एक गन होता हैं के ये अपने आस पास की सारी गंदगी को खींच लेता हैं जो इस में समाई रहती हैं। जैसे माहोल से इसको लिया जाएगा वैसा ही ये शुद्ध और अशुद्ध होगा। एक पात्र में गोबर के कण्डे (छाण , जो अक्सर गाँवों में गोबर को सुख से जलने के लिए बनाये जाते हैं) की राख बिछा ले, उस पर ग्वार पाठे को रख दे और इसके ऊपर भी राख बिछा दे। 4 से 6 घंटे रखने के बाद पानी से धो ले, इस प्रकार ग्वार पाठे का शोधन हो जाता हैं।
सब से पहले आप ग्वार पाठ (एलो वेरा) लीजिये इसको पहले शोध ले। शोध की विधि नीचे बताई गयी हैं। इसका छिलका उतार ले और गुद्दा को कुचल कर बारीक कर ले अब इस में अंदाज़ से आटा मिला ले और इसको देसी घी में भून कर खांड मिला कर हलवा बना ले और 20-20 ग्राम के लड्डू बना ले।
ज़रूरत अनुसार तीन से चार हफ्ते तक सुबह खाली पेट खाए। इस से भयंकर से भयंकर कमर दर्द और स्लिप डिस्क में आराम मिलता हैं।
ग्वार पाठे के गुणों के कारण ही इस की सब्जी अक्सर गाँवों में बनायीं जाती हैं। ग्वार पाठे के उपयोग से शीघ्र पतन के रोगियों को भी बहुत फायदा होता हैं।
ग्वार पाठे के लिए ज़रूरी हैं के इसको ऐसी जगह से लिया जाए जहाँ पर सफाई हो और प्रदुषण से मुक्त स्थान हो, क्युकी इसमें एक गन होता हैं के ये अपने आस पास की सारी गंदगी को खींच लेता हैं जो इस में समाई रहती हैं। जैसे माहोल से इसको लिया जाएगा वैसा ही ये शुद्ध और अशुद्ध होगा।
वज्रासन को वीरासन भी कहते हैं। इस आसन में शरीर वज्र की तरह मजबूत व शक्तिशाली होता है, इसलिए इसे वज्रासन कहते हैं। हठयोग में इस आसन का बहुत महत्व है क्योंकि इस आसन को करने से आध्यात्मिक शक्ति का विकास होता है। इस आसन का अभ्यास स्त्री-पुरुष दोनों समान रूप से अधिक समय तक आसनी से कर सकते हैं। वज्रासन को भोजन करने के बाद भी किया जा सकता है। घुरण्ड ऋषि ने इसके बारे में कहा है कि जो भी इस विधि से वज्रासन को करते हैं उसका शरीर दृढ़ व शक्तिशाली बन जाता है तथा उसकी कुण्डलिनी शक्ति का विकास करने में लाभकारी होता है।
बड़ा ही सरल और हमारे सेहत के लिए महत्वपूर्ण है , जिसे हमें अपने दिनचर्या में निश्चयरुप से सामिल कर लेनी चाहिए। इसे नित्य अभ्यास करने के लिए विशेषरुप से समय निकालने में अगर किसी भी प्रकार की परेशानिया हो रही हो तो घबड़ाने की आवश्यकता नहीं है , इसे किसी भी समय किसी भी जगह अर्थात् घर के अन्दर या बाहर या बिस्तर पर अभ्यास किया जा सकता है। सबसे बड़ें मजे की बात तो यह है कि इसे खाली पेट या भोजनोपरान्त दोंनो ही समय में अभ्यास करनी चाहिए , सिर्फ थोड़ा सा अंतर हो जाता है- भोजनोपरान्त पेट को ढ़िला और खाली पेट में पेट को टाईट रखना चाहिए।
इसे भोजनोपरान्त इसलिए पेट को ढ़िला रखा जाता है कि भोजन आराम से हजम हो सके, पेट को आराम मिल सके। लाभ के दिशा में सब समानरुप से है।
इसे खाली पेट में इसलिए पेट को टाईट अर्थात् कमर , पिठ और गर्दन रखा जाता है कि इन तिनों का ही व्यायाम हो सके , बाकी रहा घुटना और एड़ी तो यह दोनों ही अवस्था में ठिक है- इसमें कुछ परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।
वज्रासन के लिए सबसे पहले चटाई पर सामान्य स्थिति में बैठ जाएं। अब अपने दायें पैर को घुटनों से मोड़कर पीछे की ओर ले जाएं और दायें नितम्ब के नीचे लगाएं। एड़ी को शरीर से सटाकर तथा पंजे को ऊपर की ओर रखें। इस में घुटने से पैर की अंगुलियों तक का भाग फर्श से बिल्कुल सटाकर रखें। फिर बाएं पैर को भी घुटने से मोड़कर पीछे की ओर नितम्ब से लगाएं। दोनों घुटनों को मिलाकर रखें तथा तलवों को अलग-अलग रखें। अब अपने दोनों हाथों को तानकर घुटनों पर रखें और अपने पूरे शरीर का भार एड़ी व पंजो पर डालकर बैठ जाएं। अपने कमर, रीढ़ की हड्डी, सिर आदि को बिल्कुल सीधा व तान कर रखें। इस स्थिति में आने के बाद दृष्टि (आंखों) को नाक के अगले भाग पर टिकाकर सामान्य रूप से सांस लें और छाती को फुलाएं। वज्रासन की इस स्थिति में 10 से 15 मिनट तक रहें।
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